फ्लिपकार्ट, स्नैपडील पर धक्केशाही का आरोप, मोदी के दरवाजे पर पहुंचे Sellers

Edited By ,Updated: 28 Apr, 2016 09:51 AM

prime minister narendra modi

ई-कॉमर्स कम्पनियों पर ऑनलाइन विक्रेताओं का गुस्सा बढ़ता जा रहा है और मोदी के दरवाजे यानी कि पी.एम.ओ. तक पहुंच गया है।

नई दिल्ली: ई-कॉमर्स कम्पनियों पर ऑनलाइन विक्रेताओं का गुस्सा बढ़ता जा रहा है और मोदी के दरवाजे यानी कि पी.एम.ओ. तक पहुंच गया है। विक्रेताओं का आरोप है कि फ्लिपकार्ट, अमेजोन और स्नैपडील जैसी कम्पनियां अपनी संचालन एवं गोदाम सेवाओं का इस्तेमाल करने के लिए जबरदस्ती करती हैं। ऑल इंडिया ऑनलाइन वैंडर्स एसोसिएशन (ए.आई.ओ.वी.ए.) के एक सदस्य ने बताया कि ये कम्पनियां उत्पादों का गलत वजन करती हैं। इसके अलावा उत्पादों की वापसी कमीशन, संचालन कीमत के साथ-साथ विक्रेताओं को अदायगी देने में देरी कर रही हैं।

पी.एम.ओ. से नियामक की मांग
विक्रेताओं ने प्रधानमंत्री कार्यालय (पी.एम.ओ.) से मदद की गुहार लगाते हुए  ई-कॉमर्स कम्पनियों के साथ बढ़ते मामलों को निपटाने के लिए नियामक की मांग की है। एसोसिएशन ने फ्लिपकार्ट के सचिन बंसल और स्नैपडील के कुणाल बहल को संबोधित करते हुए दायर याचिका में कहा कि विक्रेताओं को विचार-विमर्श के लिए तो बुलाया नहीं जाता लेकिन दुनिया भर से बंसलों और बहलों को बुलाया जाता है।

वैंडर्स को हो रहा है काफी नुक्सान
खरीदारों की ओर से उत्पाद वापसी की बढ़ती संख्या की वजह से वैंडर्स को बड़ा नुक्सान हो रहा है। ई-कॉमर्स कम्पनियां उत्पाद वापसी होने पर वैंडर्स से वापसी कमीशन और संचालन कीमत वसूल रही हैं। ग्राहकों द्वारा पैकेट को खोलने के बाद उत्पाद वापसी करने पर भी यह लागत वैंडर्स से वसूली जाती है और  ई-कॉमर्स कम्पनियां उनकी बातों पर ध्यान भी नहीं देती हैं। इतना ही नहीं कम्पनियों की ओर से अदायगी करने में देरी भी की जा रही है।

इसके साथ ही कम्पनियां अपनी वैबसाइट पर विज्ञापन के लिए शुल्क लगातार बढ़ा रही हैं, और तो और उत्पादों का वजन भी सही नहीं तोला जाता। उसे बढ़ा कर दिखाया जाता है और वैंडर्स से ’यादा शुल्क वसूला जाता है जबकि कुछ कम्पनियां दूसरे वैंडर्स के साथ छूट मूल्य निर्धारण रणनीति का खुलासा कर देती हैं। ऐसे में हमारी बिक्री नहीं बढ़ पाती है।

नहीं है कोई परेशानियों को सुनने वाला
एसोसिएशन ने यह भी कहा कि विभिन्न सरकारी विभागों से कई बार मुलाकात करने की मांग करने के बावजूद वह हमारी परेशानियों को नहीं सुन रहे। एसोसिएशन ने कहा कि हम बताना चाहते हैं कि आखिर क्यों ई-कॉमर्स के लिए इरडा, सेबी, भारतीय रिजर्व बैंक आदि जैसा एक नियामक होना चाहिए।

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