Edited By ,Updated: 23 Jul, 2016 03:10 PM
जिसने अपनी आत्मा को जीता है वह खुद का दोस्त है। जिसने अपने आप को नहीं जीता, वह खुद से ही दुश्मनी निभाने लगता है। मनुष्य जन्म बड़ा दुर्लभ है क्योंकि
जिसने अपनी आत्मा को जीता है वह खुद का दोस्त है। जिसने अपने आप को नहीं जीता, वह खुद से ही दुश्मनी निभाने लगता है। मनुष्य जन्म बड़ा दुर्लभ है क्योंकि यह नहीं कहा जा सकता कि मरने के बाद फिर हमें इंसान का जन्म ही मिले। किसी भी योनि में जन्म हो सकता है।
यदि किसी दूसरी योनि में चले गए तब वापस इंसान का जन्म मिलना आसान नहीं होता लेकिन जो साधना में लगे होते हैं उनको मनुष्य जन्म मिलना आसान होता है। इसलिए यदि इस जन्म में साधना से चूक गए तो फिर जन्म-मरण की लंबी यात्रा में फंस जाएंगे। जिसने साधना के जरिए अपने मन और बुद्धि को जीत कर अपनी आत्मा को जान लिया है वह खुद का मित्र हो जाता है और जन्म-मरण के झंझट से बच जाता है।
इसके विपरीत जिसने अपनी मन-बुद्धि को नहीं जीता और आत्मभाव को नहीं जाना वह पूरा जीवन जीता तो है लेकिन अपने आप से जीवन भर दुश्मन की तरह व्यवहार करता रहता है। हमें यह जीवन अपने स्वरूप को जानने के लिए मिला था लेकिन हम ईश्वर से न जुड़कर मोह-माया में उलझ जाते हैं और खुद ही अपने शत्रु बन जाते हैं।