Edited By ,Updated: 24 Sep, 2015 11:21 AM
मृत्यु का अर्थ है यह लोक छोड़कर परलोक गमन करना। जिस प्रकार गांव जाने के लिए हम अपना गांव छोड़कर सफर के लिए जाते हैं, उसी प्रकार मृत्यु एक सफर है जो इहलोक छोड़कर परलोक जाने के लिए किया जाता है। सफर करने वाले 2
मृत्यु का अर्थ है यह लोक छोड़कर परलोक गमन करना। जिस प्रकार गांव जाने के लिए हम अपना गांव छोड़कर सफर के लिए जाते हैं, उसी प्रकार मृत्यु एक सफर है जो इहलोक छोड़कर परलोक जाने के लिए किया जाता है। सफर करने वाले 2 तरह के होते हैं। कुछ ऐसे होते हैं जो सफर की पूर्व तैयारी बिल्कुल ही नहीं करते। दूसरे लोग ऐसे होते हैं जो सफर पर जाने से पूर्व उचित और जरूरी तैयारी बहुत पहले से करके रखते हैं। पूर्व तैयारी न करने वाले लोगों को गड़बड़ी, घोटाले या हानि का सामना करना पड़ता है, तो तैयारी करने वाले लोगों का सफर शक्ति से, संतोष से होता है।
यही नियम परलोक के सफर पर भी उतना ही लागू होता है। जो पल हम जीते हैं, वह आखिरी हैं। ऐसी हमारे मन की धारणा बन जाए तो इंसान परलोक के सफर की तैयारी बहुत पहले से करके रखता है। अपनी पत्नी के लिए, बच्चों के लिए, जितना हो सके उतना इंतजाम वह पहले से कर देता है। अपने आस-पड़ोस के लोगों के साथ दोस्ती का व्यवहार करता है। संघर्षों से दूर रहता है। उस पर ध्यान देता है कि अपने व्यवहार से दूसरों को दुख न पहुंचे।
मतलब यही है कि वर्तमान में जीते हुए मिलने वाला हर पल वह ईश्वर का नाम स्मरण करता है। ऐसा करने से होता यह है कि यमराज के आने से पहले ही उसका मन बंधनों से और दुखों से मुक्त हो जाता है। ऐसा मुक्त भक्त जब परलोक पहुंचता है तो ईश्वर के पास ही उसे स्थान मिलता है।