जानिए, बच्चों में कैसे पड़ती है झूठ बोलने की आदत

Edited By ,Updated: 15 Jul, 2016 10:08 AM

children

संत कबीर जी ने कहा है- सांच बराबर तप नहीं, झूठ बराबर पाप अर्थात् सच बोलने के समान कोई तपस्या ही नहीं हो सकती और झूठ बोलने जैसा कोई पाप नहीं है।

संत कबीर जी ने कहा है- सांच बराबर तप नहीं, झूठ बराबर पाप अर्थात् सच बोलने के समान कोई तपस्या ही नहीं हो सकती और झूठ बोलने जैसा कोई पाप नहीं है।

हम चाहे अपने आप को कितना भी धार्मिक कहलाएं, किंतु अगर हम अपने को सच बोलने के पलड़े पर अपने आप को रखें, तो हमें अपने आप ही पता लग जाएगा कि हम कहां पर खड़े हैं?

छोटी-छोटी बात पर हम झूठ बोल देते हैं। सब्जी लेने जब जाएंगे तो सब्जी वाले से पूछेंगे की भई, यह आलू कैसे दिए? बैंगन कैसे हैं? जी, बैंगन तो चौदह रूपए किलो हैं। चौदह रूपए? कमाल है। वो सामने वाला तो बारह रुपए का दे रहा है।

 

सच्चाई तो यह है कि हमने पूछा भी नहीं होता किसी को, ऐसे ही बोल देते हैं। हमें पता होता है कि यह चौदह बोल रहा है, मैं बारह बोल रहा हूं, तेरह में फैसला हो जाएगा।

एक रुपये के लिए झूठ बोल देते हैं।

 

ऐसा एक रुपया जो हमारे घर में, सिरहाने के आस-पास, इधर-उधर डिब्बों में, खानों में, दराजों में पड़ा रहता है, हम उसकी ओर ध्यान भी नहीं देते और उसी एक रुपए के लिए हम झूठ बोल देते हैं। वो झूठ जिसे, कबीर दास जी सबसे बड़ा पाप कहते हैं।

 

ऐसा इसलिए क्योंकि जितने भी पाप हैं, वो झूठ के बिना होते ही नहीं हैं। बिना झूठ बोले पाप नहीं हो सकता। जब हम झूठ बोलते हैं तब हम अपने आप को ऐसा अनुभव करते हैं जैसे हम कोई बहुत महान काम कर रहे हैं, लेकिन वही झूठ जब कोई हमें बोलता है तो हमें बहुत बुरा लगता है। हम यह नहीं सोचते जब मैं झूठ बोल रहा था तब दूसरा मेरे बारे में क्या सोच रहा होगा?

 

कई बार ऐसा भी होता है कि सभी घर के सदस्य इकट्ठे बैठकर खाना खा रहे होते हैं, और अचानक दरवाजे की घण्टी बज जाती है। बच्चे को बोला, "काका, देखना तो कौन आया?" 

 

बच्चा दरवाजे के छोटे से छेद से देखता है और बोलता है, "मम्मी! वो वर्मा आंटी आई हैं।"

 

अच्छा! कह दे," मम्मी घर पर नहीं हैं।"

 

यह हम क्या संस्कार दे रहे हैं, बच्चों को? हम घर पर बैठे हैं, मां घर में ही है लेकिन बच्चे से कह रही है- जाकर बोल, मम्मी घर में नहीं है या कई बार कोई अन्य आया और हमने कह दिया कि बोल दे, पापा घर पर नहीं हैं, जबकि वे घर में ही बैठे हैं।

 

अब जब बच्चा हमारे सामने, हमीं से झूठ बोलता है तो गुस्सा आता है। डांटते हुए कहते हैं- मम्मी से झूठ बोलता है, पापा से झूठ बोलता है। शर्म नहीं आती।

 

उस समय हम यह भूल जाते हैं कि बच्चे को झूठ बोलना सिखाया किसने?

 

जब वो घर की घंटी बजी थी तब हमने उसे क्या संस्कार दिए थे? हमने उसे यही संस्कार दिए थे कि मैं घर में हूं पर तू बोल आ कि मम्मी अथवा पापा घर पर नहीं हैं।

बच्चा तो भोला होता है। हो सकता है वो बाहर जाकर यही बोल आया हो," आंटी, मम्मी कह रहीं हैं कि वे घर पर नहीं हैं, अथवा पापा कह रहे हैं कि वे घर पर नहीं हैं।"

 

खैर, हमें अपने परमार्थ में आगे बढ़ने के लिए अथवा पुण्य कमाने के लिए हमें संत कबीर दास जी की बात को याद रखना चाहिए- सांच बराबर तप नहीं, झूठ बराबर पाप।

श्री गौड़िया मठ की ओर से

श्री भक्ति विचार विष्णु जी महाराज

bhakti.vichar.vishnu@gmail.com 

Related Story

IPL
Chennai Super Kings

176/4

18.4

Royal Challengers Bangalore

173/6

20.0

Chennai Super Kings win by 6 wickets

RR 9.57
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!