जब हनुमान जी के अवतार ने कृष्ण भक्त बनना किया अस्वीकार...

Edited By ,Updated: 20 Oct, 2016 01:45 PM

hanuman krishna ram

श्रीमुरारी गुप्त जी के माध्यम से भगवान श्रीचैतन्य महाप्रभु जी ने इष्टनिष्ठा की शिक्षा प्रदान की तथा ये भी बताया कि आराध्य देव में निष्ठा के बिना प्रेम बढ़ता नहीं।

श्रीमुरारी गुप्त जी के माध्यम से भगवान श्रीचैतन्य महाप्रभु जी ने इष्टनिष्ठा की शिक्षा प्रदान की तथा ये भी बताया कि आराध्य देव में निष्ठा के बिना प्रेम बढ़ता नहीं। हनुमान जी के अवतार मुरारी गुप्त जी महाप्रभु जी का राम स्वरूप से दर्शन करते थे। आपकी इष्ट निष्ठा की परीक्षा लेने के लिए श्रीमहाप्रभु जी ने आपसे कहा, 'सर्वाश्रय, सर्वांशी, स्वयं भगवान्, अखिल रसामृत मूर्ति- व्रजेन्द्रनन्दन श्री कृष्ण के भजन में जो आनन्द है, भगवान के अन्य स्वरूपों की आराधना में वह आनन्द नहीं है।' 



श्री मुरारी गुप्त श्री महाप्रभु जी को कृष्ण भजन करने का वचन देने पर भी घर में आकर यह सोचकर कि भगवान श्री रघुनाथ जी के पादपद्मों को त्याग करना होगा, अस्थिर हो उठे। सारी रात जाग कर ही बिता देने पर, दूसरे दिन प्रातः महाप्रभु जी के पादपद्मों में निवेदन करते हुए बोले, 'मैंने अपने इस मस्तक को श्री रघुनाथ जी के चरणों में बेच दिया है परन्तु अब मैं पुनः वहां से इस सिर को नहीं उठा सकता हूं। अब इस दुविधा में मैं दुःख पा रहा हूं कि श्रीरघुनाथ जी के चरण मुझसे छोड़े नहीं जाते। किन्तु यदि नहीं छोड़ता तो आपकी आज्ञा भंग होती है। कुछ समझ में नहीं आता, क्या करूं ? आप दयामय हैं, मेरे ऊपर ऐसी कृपा करो कि आपके सामने ही मेरी मृत्यु हो जाए, तब यह संशय समाप्त हो जाएगा।'  


                                                                                                                          
भगवान  श्रीमन्महाप्रभु  मुरारीगुप्त के इष्टनिष्ठायुक्त वाक्य सुनकर परम संतुष्ट होकर बोले , 'तुम तो श्रीराम जी के किंकर साक्षात् हनुमान हो, तुम भला उनके चरण कमलों को कैसे छोड़ सकते हो? सचमुच वह भक्त धन्य है, जो किसी भी परिस्थिति में अपने प्रभु के चरण नहीं छोड़ता है और वही प्रभु धन्य हैं, जो कभी भी अपने जन को नहीं छोड़ते हैं।'

श्री चैतन्य गौड़िया मठ की ओर से
श्री भक्ति विचार विष्णु जी महाराज
bhakti.vichar.vishnu@gmail.com

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