Edited By ,Updated: 13 Oct, 2016 11:54 AM
जब हम सुनते हैं कि ‘कर्म किए जा, फल की चिंता मत कर’ तो कभी-कभी यह काफी अजीब लगता है कि कोई काम हम बिना फल की चिंता के कैसे कर सकते हैं?
जब हम सुनते हैं कि ‘कर्म किए जा, फल की चिंता मत कर’ तो कभी-कभी यह काफी अजीब लगता है कि कोई काम हम बिना फल की चिंता के कैसे कर सकते हैं? आखिर हम कोई संत या संन्यासी तो हैं नहीं लेकिन यह इस श्लोक को गलत ढंग से समझना हुआ। दरअसल यह तो हमें सिर्फ सलाह देता है कि आप बस अपना काम करें। उस काम का क्या नतीजा होगा, उस पर ज्यादा ध्यान न दें।
यह हमें अपने-अपने आज में जीने को कहता है। आज में जीना ही पल में जीना है। पल में जीने के मायने हैं आप जहां हो, जिस हाल में हो उसे भरपूर जियो। उस पल का पूरा मजा लो। इसका मतलब हुआ कि आप अपना जो भी काम कर रहे हैं उसमें पूरी तरह डूब जाओ। उसमें डूबने के मायने हैं कि आप उस पल अपना 100 प्रतिशत दे रहे हैं।
मजेदार बात यह है कि आप काम हमेशा अपने आज में कर रहे होते हैं लेकिन आपका दिमाग और मन हमेशा भविष्य में होता है। सुबह से लेकर शाम तक काम करने के बाद भी मन को संतुष्टि नहीं मिलती क्योंकि जो हमने किया है या जो हमारे पास है हम उसका सुख नहीं ले पाते और उस काम के नतीजे यानी कि भविष्य की चिंता में डूब जाते हैं। ऐसा नहीं है कि हम जानते नहीं कि नतीजा हमारे हाथ में है ही नहीं लेकिन फिर भी जान कर अनजान बनते हैं। इंसान अगर वर्तमान में जीना सीख ले तो उसकी बहुत सारी परेशानियां अपने आप ही गायब हो जाती हैं।
आप जिस पल में जी रहे हैं वही काम का समय है और उसमें मजा तब ही आएगा जब आप जुटकर अपनी इच्छा के काम कर सकते हैं, बिना चिंता किए कि उसका नतीजा आपके हक में जाएगा या नहीं क्योंकि तब ही आप खोने या पाने की चिंता के बिना किसी भी काम को बिना प्रैशर के कर सकते हैं। यही कर्म योग है।