गणेश चतुर्थी को कहा जाता है डण्डा चौथ, जानिए क्यों...

Edited By ,Updated: 11 Sep, 2016 09:56 AM

lord gnesha

भगवान श्री गणेश विघ्नहर्ता विनायक हैं तथा सनातन धर्म में इनका स्थान सर्वोपरी है। शास्त्रों के अनुसार ऋग्वेद तथा यजुर्वेद में गणपति शब्द का

भगवान श्री गणेश विघ्नहर्ता विनायक हैं तथा सनातन धर्म में इनका स्थान सर्वोपरी है। शास्त्रों के अनुसार ऋग्वेद तथा यजुर्वेद में गणपति शब्द का उल्लेख हुआ है। शिव पुराण, गणेश पुराण, मुद्गलपुराण आदि कई शास्त्रों में गणेश जी की विरुदावली का वर्णन किया गया है। गणपति जी का स्थान शिव और शक्ति के दूसरे पुत्र के रूप में प्रचलित है।

 

शास्त्रों के अनुसार प्रत्येक शुभ कार्य से पहले तथा सभी देवताओं से पहले गणेश जी की पूजा का विधान है। भगवान गणेश बुद्धि ऋद्धि व सिद्धि के स्वामी हैं। एकदंत गणपति जी का स्वरूप अत्यन्त मंगलदायक है। गणेश जी अग्रपूज्य, शिवगणों के ईश तथा प्रणवस्वरूप हैं। गणपति जी चतुर्बाहु हैं तथा अपने चारों हाथों में वे क्रमश: पाश, अंकुश, मोदकपात्र तथा वरमुद्रा धारण करते हैं। गणपति जी रक्तवर्ण, लम्बोदर, शूर्पकर्ण तथा पीतवस्त्रधारी हैं।

 

गणेश चतुर्थी पर्व: गणेश चतुर्थी भाद्रपद महीने के शुक्ल शुक्लपक्ष की चौथ के दिन मनाया जाता है तथा प्रत्येक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी, गणेश पूजन हेतु समर्पित है। गणेश पुराण के अनुसार भाद्रपद मास के शुक्लपक्ष की चतुर्थी के दिन मध्याह्न के समय गणेश जी का जन्म हुआ था तथा यह पर्व गणेश जी के विशिष्ट पूजन हेतु समर्पित है।

 

गणपति पूजन से विद्या, बुद्धि तथा ऋद्धि-सिद्धि की प्राप्ति तो होती ही है, साथ ही विघ्न-बाधाओं का भी समूल नाश हो जाता है। पौराणिक काल में बालकों का विद्या आरम्भ गणेश चतुर्थी से ही प्रारम्भ होता था तथा बालक छोटे-छोटे डण्डों को बजाकर खेलते हैं। इसी कारण लोकभाषा में इसे डण्डा चौथ भी कहते हैं।

 

आचार्य कमल नंदलाल

ईमेल: kamal.nandlal@gmail.com

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