Edited By Punjab Kesari,Updated: 03 Mar, 2018 11:00 AM
वाराणसी में गंगा के किनारे एक गुरुजी रहते थे। उनके अनेक शिष्य थे। इस तरह आखिर वह दिन आया जब शिक्षा पूरी होने के बाद गुरुदेव उन्हें अपना आशीर्वाद देकर विदा करने वाले थे।सुबह गंगा में स्नान करने के बाद गुरुदेव और सभी शिष्य पूजा करने बैठ गए।
वाराणसी में गंगा के किनारे एक गुरुजी रहते थे। उनके अनेक शिष्य थे। इस तरह आखिर वह दिन आया जब शिक्षा पूरी होने के बाद गुरुदेव उन्हें अपना आशीर्वाद देकर विदा करने वाले थे।सुबह गंगा में स्नान करने के बाद गुरुदेव और सभी शिष्य पूजा करने बैठ गए। सभी ध्यान कर रहे थे, तभी एक बच्चे की आवाज सुनाई पड़ी। वह मदद के लिए पुकार रहा था। एक शिष्य अपनी जान की परवाह किए बगैर नदी की ओर दौड़ा और उसमें छलांग लगा दी।
वह किसी भी तरह से उस बच्चे को बचाकर किनारे तक लाया। तब तक सभी शिष्य ध्यान में मग्न थे, लेकिन गुरुजी ने यह सब घटनाक्रम अपनी आंखों से देखा। तब गुरुजी ने कहा, ‘‘एक रोते हुए बच्चे की पुकार सुन तुम्हारा एक मित्र बच्चे को बचाने के लिए नदी में कूद पड़ा।’’ शिष्यों ने कहा, ‘‘उसने पूजा छोड़कर अधर्म किया है।’’
इस पर गुरुदेव ने कहा, ‘‘अधर्म उसने नहीं, तुम लोगों ने किया है। तुमने डूबते हुए बच्चे की पुकार अनसुनी कर दी। पूजा-पाठ, धर्म-कर्म का एक ही उद्देश्य होता है, प्राणियों की रक्षा करना। तुम आश्रम में धर्मशास्त्रों, व्याकरणों, धर्म-कर्म आदि में पारंगत तो हुए, लेकिन धर्म का सार नहीं समझ सके।’’ तात्पर्य यह कि परोपकार और संकट में फंसे दूसरे लोगों की सहायता करने से बड़ा कोई धर्म नहीं।