श्री रामचरितमानस: भगवान को जानने व देखने के इच्छुक अवश्य पढ़ें...

Edited By ,Updated: 03 Oct, 2016 12:49 PM

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सर्वविदित है की श्रीमती मीरा जी, गिरधर-गोपाल जी के मन्दिर में बैठ कर घंटों उनसे बातें करती रहती थी। श्री चैतन्य-चरितामृत नामक ऐतिहासिक ग्रन्थ के

सर्वविदित है की श्रीमती मीरा जी, गिरधर-गोपाल जी के मन्दिर में बैठ कर घंटों उनसे बातें करती रहती थी। श्री चैतन्य-चरितामृत नामक ऐतिहासिक ग्रन्थ के अनुसार, सरल हृदय वाले ब्राह्मण की गवाही देने के लिए गोपाल जी की मूर्ति वृन्दावन से ओड़ीसा गई और गवाही दी। यह श्रीमूर्ति आज भी साक्षी गोपाल के नाम से ओड़ीसा राज्य में विराजित हैं और वहां का रेलवे-स्टेशन साक्षी-गोपाल रेलवे स्टेशन के नाम से प्रसिद्ध है।
 

श्री वाल्मीकि जी ने रामायण सोच-सोच कर या देख-देख कर नहीं लिखी। उन्होंने रामायण, भगवान श्रीराम के आने से हजारों वर्ष पूर्व लिख दी थी। भगवान अद्भुत, उनकी लीलाएं भी अद्भुत। दिव्य भगवान के दिव्य रूप, दिव्य गुण, दिव्य लीला, दिव्य धाम, दिव्य परिकर व दिव्य मूर्ति को हम अपनी भौतिक इन्द्रियों से कैसे समझ-देख पाएंगे। 


भगवान ने अर्जुन को और ॠषि वेद-व्यास जी ने संजय को दिव्य दृष्टि दी थी, तभी वे भगवान का दिव्य रूप देख पाये थे। जो वस्तु हमारी सीमित इन्द्रियों की सीमा में न हो, उसका अर्थ यह नहीं है कि वह वस्तु है ही नहीं। कुरुक्षेत्र के मैदान पर हज़ारों-करोड़ों की संख्या में लोग थे, परन्तु वे विराट रूप नहीं देख पाये थे। 

श्रीराम चरितमानस में गोस्वामी तुलसी दास जी ने लिखा है, 'सोई जानत, जिन देहु जनाई'


अर्थात भगवान को वही जान सकता है या देख सकता है, जिनकी भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान अपने आप को जनाएं व अपना दिव्य दर्शन करवाएं। 


श्री चैतन्य गौड़िया मठ की ओर से
श्री भक्ति विचार विष्णु जी महाराज
bhakti.vichar.vishnu@gmail.com

 

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