भविष्य को सुरक्षित रखने के लिए विजयदशमी के संदेश को समझें

Edited By ,Updated: 22 Oct, 2015 10:28 AM

vijay dashmi dussehra

सदाचार की दुराचार पर विजय का प्रतीक विजय दशमी पर्व आश्विन मास की शुक्ल पक्ष की दशमी को बड़े हर्षोल्लास से मनाया जाता है, हमारे धर्मग्रन्थों में यह दिन सर्वकार्य सिद्धिदायक है। इस से नौ दिन पूर्व शारदीय नवरात्रों में मां भगवती जगदम्बा का पूजन व...

सदाचार की दुराचार पर विजय का प्रतीक विजय दशमी पर्व आश्विन मास की शुक्ल पक्ष की दशमी को बड़े हर्षोल्लास से मनाया जाता है, हमारे धर्मग्रन्थों में यह दिन सर्वकार्य सिद्धिदायक है। इस से नौ दिन पूर्व शारदीय नवरात्रों में मां भगवती जगदम्बा का पूजन व आह्वान किया जाता है। इन नौ दिनों में भगवान श्री राम ने समुद्र तट पर मां आदि शक्ति की पूजा कर उन्हें प्रसन्न किया तथा दसवें दिन लंकापति रावण का वध किया। तब से ही असत्य पर सत्य की तथा अधर्म पर धर्म की विजय का यह पर्व विजयदशमी पर्व के रूप में मनाया जाता है।

विजयदशमी का पर्व राष्ट्रीय महत्व का पर्व है। भारत के कई प्रदेशों में यह कृषि से संबंधित पर्व भी है। हमारे धर्म-ग्रन्थों में इस पर्व में आयुध-पूजा तथा शमी वृक्ष की पूजा का भी विधान है। भारतीय संस्कृति शौर्य एवं वीरता की उपासक है, हमारे देवी-देवताओं की आराधना में उनके हाथों में आयुधों का विवरण हमें प्राप्त होता है, जैसे भगवान शिव के हाथ में त्रिशूल, मां भगवती के हाथों में शंख, चक्र, गदा, धनुष इत्यादि, भगवान विष्णु जी के हाथ में सुदर्शन चक्र इत्यादि। मानवता की रक्षा हेतु इन सबके द्वारा आयुध धारण किए जाते हैं।
 
राष्ट्र की सुख-समृद्धि के लिए आवश्यक है कि हम सब में विवेक जाग्रत हो। हम अपने भीतर पनप रही बुराई का अन्त स्वयं करें, ताकि भविष्य में रावण पैदा ही न हों, परन्तु ऐसा संभव नहीं है। युगों-युगों से अच्छाई एवं बुराई के मध्य युद्ध होता आ रहा है। परन्तु विजय सदैव दुष्कर्मों पर सत्कर्मों की, असुरत्व पर देवत्व की, असत्य पर सत्य की, अन्याय पर न्याय तथा दुराचार पर सदाचार की ही हुई है। 

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