Edited By ,Updated: 09 Oct, 2015 10:40 AM
एक बार एक राजा अपने नगर के भ्रमण पर निकला। वह कुछ दूर ही चला कि एक भिखारी आया और उससे भिक्षा की मांग की। राजा ने उसे परेशान न करने और आगे जाने को कहा।
एक बार एक राजा अपने नगर के भ्रमण पर निकला। वह कुछ दूर ही चला कि एक भिखारी आया और उससे भिक्षा की मांग की। राजा ने उसे परेशान न करने और आगे जाने को कहा। भिखारी उलाहने वाली हंसी हंसा और बोला, ‘महामहिम! अगर मेरे बोलने से आपके मन की शांति भंग हो रही है तो फिर मान लीजिए कि वह पूर्ण शांति है ही नहीं।’
राजा को महसूस हुआ कि वह भिखारी असल में भिखारी नहीं है बल्कि एक साधु है। उसने अपना सर उनके चरणों में झुकाया और कहा, ‘‘हे महात्मा, मुझे अपनी इच्छा बताइए मैं अपनी सारी सम्पदा आपके चरणों में डाल दूंगा।’’
साधु फिर हंसा, ‘‘उस बात का वायदा मत करो जो तुम कर नहीं पाओगे।’’
इस पर राजा को क्रोध आ गया। उसने नगर भ्रमण का ख्याल छोड़ दिया और साधु को अपने महल ले आया। महल पहुंच कर साधु ने राजा के सामने अपना पात्र कर दिया और बोले, ‘बस इस पात्र को सोने के सिक्कों से भर दीजिए।’
राजा मुस्कुराया और सोने के सिक्के लाने का आदेश दिया। तुरन्त सहायक एक थाली भरकर सोने के सिक्के ले आया। जैसे ही राजा ने उन्हें साधु के पात्र में डाला सारे सिक्के छोटे से पात्र में समा गए। इसके बाद और सिक्के मंगाए गए लेकिन वे भी पात्र में समा गए। लगातार बहुत सारे सिक्के डालने के बावजूद वह पात्र खाली ही रहा। राजा का पूरा कोष खाली हो गया। यह देखकर राजा ने हार स्वीकार की और साधु के चरणों में दंडवत हो गया।
साधु महाराज तब बोले, ‘‘राजन, यह भिक्षा पात्र हर किसी द्वारा नहीं भरा जा सकता। केवल तुम ही नहीं, बल्कि दुनिया का अमीर से अमीर आदमी भी इसे नहीं भर सकता।
यह कोई साधारण भिक्षा पात्र नहीं है। यह एक व्यक्ति की खोपड़ी है जो पूरी जिंदगी लालच में पड़ा रहा और लालच के कारण ही मारा गया।’’
यह कहानी यही बताती है कि हमें अपने साधनों के भीतर ही अपनी जरूरतें बनानी चाहिएं। ऐसा करने पर ही हम प्रसन्न रह सकते हैं। हमें लालच से सावधान रहना चाहिए। हर तरह का लालच चाहे वह पद का हो या धन का, हमारा अहित ही करता है।