Edited By Niyati Bhandari,Updated: 10 Feb, 2020 10:46 AM
भगवान बुद्ध अपने शिष्यों के साथ बैठे हुए थे। एक महिला विलाप करते हुए उनके पास पहुंची। उसकी गोद में उसके मृत पुत्र का शव था।
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भगवान बुद्ध अपने शिष्यों के साथ बैठे हुए थे। एक महिला विलाप करते हुए उनके पास पहुंची। उसकी गोद में उसके मृत पुत्र का शव था।
‘‘महाराज, आप तो सर्वशक्तिमान हैं, साक्षात्, भगवान हैं। मैं अपने एकमात्र पुत्र की मृत्यु के कारण अनाथ हो गई हूं। आप इसे जीवित कर दें तो मेरा जीवन इसे पालने-पोसने में बीत जाएगा।’’
भगवान बुद्ध ने महिला से कहा, ‘‘तुम किसी ऐसे घर की एक मुट्ठी मिट्टी लेकर आओ जिस घर का कोई व्यक्ति न मरा हो। उस मिट्टी के बल पर मैं तुम्हारे पुत्र को जीवित कर दूंगा।’’
महिला भागी-भागी उस नगर के प्रत्येक घर पहुंची तथा बोली, ‘‘मुझे एक मुट्ठी मिट्टी चाहिए परंतु शर्त यही है कि मिट्टी उस घर की हो जिसका कोई व्यक्ति मरा नहीं हो।’’
वह पूरे नगर के प्रत्येक घर का चक्कर लगा आई परंतु उसे ऐसा एक भी घर नहीं मिला, जिसका कोई व्यक्ति कभी नहीं मरा हो। वह निराश होकर भगवान बुद्ध के पास पहुंची तथा बोली, ‘‘महाराज जी, मुझे तो एक भी घर ऐसा न मिला, जिसका कोई व्यक्ति नहीं मरा हो।’’
बुद्ध ने उसे समझाया, ‘‘अब तुम समझ लो कि मृत्यु अनिवार्य है। मृत्यु से कोई नहीं बचा।’’
ये शब्द सुनते ही उसे बोध हो गया तथा पुत्र की मृत्यु पर उसने संताप कर लिया।