Edited By Punjab Kesari,Updated: 31 Dec, 2017 10:19 AM
चाणक्य नीति द्वारा मित्र-भेद से लेकर दुश्मन तक की पहचान, पति-परायण तथा चरित्र हीन स्त्रियों में विभेद, राजा का कर्तव्य और जनता के अधिकारों तथा वर्ण व्यवस्था का उचित निदान हो जाता है। महापंडित आचार्य चाणक्य की ''चाणक्य नीति'' में कुल सत्रह अध्याय है,
चाणक्य नीति द्वारा मित्र-भेद से लेकर दुश्मन तक की पहचान, पति-परायण तथा चरित्र हीन स्त्रियों में विभेद, राजा का कर्तव्य और जनता के अधिकारों तथा वर्ण व्यवस्था का उचित निदान हो जाता है। महापंडित आचार्य चाणक्य की 'चाणक्य नीति' में कुल सत्रह अध्याय है, जिस में से एक अध्याय में उन्होंने कामचोर व्यक्ति के बारे में बताया है।
कार्यबाह्यो न पोषयत्याश्रितान्
भावार्थ: जो अपने कर्तव्य से बचते हैं वे अपने आश्रित परिजनों का भरण-पोषण नहीं कर पाते। जो व्यक्ति अपने कर्तव्य बोध से बचकर सदैव कार्य से जी चुराता है उससे यह कैसे आशा की जा सकती है कि वह अपने आश्रित परिजनों (बंधु, संतान, माता-पिता, पत्नी आदि) का भरण-पोषण कर पाएगा, ऐसा व्यक्ति निकम्मा और कामचोर कहलाता है।