इस मंदिर में स्थापित है शिव जी का अद्भुत शिवलिंग

Edited By Jyoti,Updated: 21 Feb, 2019 10:08 AM

aalor lingai mata mandir

प्राचीन मंदिरों की गिनती करनी हो तो उस गिनती में सबसे पहले भारत के मंदिर शामिल होते हैं। कहा जाता है कि हिंदू धर्म से जुड़े जितने मंदिर और धार्मिक स्थल भारत में है

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प्राचीन मंदिरों की गिनती करनी हो तो उस गिनती में सबसे पहले भारत के मंदिर शामिल होते हैं। कहा जाता है कि हिंदू धर्म से जुड़े जितने मंदिर और धार्मिक स्थल भारत में है उतने किसी और देश में नहीं है। इशका कारण है हमारे देश का इतिहास। भारत देश में इतने ऐतिहासिक और प्राचीन शहर है, जो यहां के इतिहास के साथ-साथ सनातन धर्म को दर्शाते हैं। इनमें से कई तो ऐसे स्थान है जो अपने इतिहास और प्राचीनता के लिए अन्य देशों में बहुत प्रसिद्ध है।  तो वहीं कुछ ऐसे भी धार्मिक स्थल हैं जिनके बारे में तो बहुत से लोग जानते तक नहीं होंगे। तो आईए आज बात करते हैं एक ऐसे मंदिर के बारे में छत्तीसगढ़ आलोर गांव की एक गुफा में स्तिथ है। इस मंदिर की अनोखी बात यह है कि इस मंदिर में शिवलिंग कि स्त्री रूप में पूजा होती है। 
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आलोर गांव में है मंदिर:
फरसगांव से लगभग 8 किमी दूर पश्चिम से बड़ेडोंगर मार्ग पर ग्राम आलोर स्थित है। जहां एक पहाड़ी स्थित है जिसे लिंगई गट्टा लिंगई माता के नाम से जाना जाता है।  इस छोटी से पहाड़ी के ऊपर विस्तृत फैला हुआ चट्टान के उपर एक विशाल पत्थर है। बाहर से अन्य पत्थर की तरह सामान्य दिखने वाला यह पत्थर स्तूप-नुमा है इस पत्थर की संरचना को भीतर से देखने पर ऐसा लगता है कि मानो कोई विशाल पत्थर को कटोरानुमा तराश कर चट्टान के ऊपर उलट दिया गया है। इस मंदिर के दक्षिण दिशा में एक सुरंग है जो इस गुफा का प्रवेश द्वार है। द्वार इनता छोटा है कि बैठकर या लेटकर ही यहां प्रवेश किया जा सकता है। गुफा के अंदर 25 से 30 आदमी बैठ सकते हैं। गुफा के अंदर चट्टान  के बीचों-बीच निकला शिवलिंग है जिसकी ऊंचाई लगभग दो फुट होगी, श्रद्धालुओं का मानना है कि इसकी ऊंचाई पहले बहुत कम थी समय के साथ यह बढ़ गई।
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केवल एक दिन खुलता है मंदिर :
परंपरा और लोकमान्यता के कारण इस प्राकृतिक मंदिर में प्रति दिन पूजा अर्चना नहीं होती है। वर्ष में एक दिन मंदिर का द्वार खुलता है और इसी दिन यहां मेला भरता है।  संतान प्राप्ति की मन्नत लिये यहां हर वर्ष हजारों की संख्या में श्रद्धालु जुटते हैं।  प्रतिवर्ष भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष नवमीं तिथि के पश्चात आने वाले बुधवार को इस प्राकृतिक देवालय को खोल दिया जाता है, तथा दिनभर श्रद्धालुओं द्वारा पूजा अर्चना एवं दर्शन की जाती है। 
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मंदिर से जुडी मान्यताएं :
इस मंदिर से जुडी दो विशेष मान्यताएं है। पहली मान्यता संतान प्राप्ति को लेकर है। इस मंदिर में आने वाले अधिकांश श्रद्धालु संतान प्राप्ति की मन्नत मांगने आते है। यहां मनौती मांगने का तरीका भी निराला है। संतान प्राप्ति की इच्छा रखने वाले दंपति को खीरा चढ़ाना आवश्यक है प्रसाद के रूप में चढ़े खीरे को पुजारी, पूजा पश्चात दंपति को वापस करता है।  दम्पति को शिवलिंग के सामने ही इस ककड़ी को अपने नाखून से चीरा लगाकर दो टुकड़ों में तोडना होता है और फिर  सामने ही इस प्रसाद को दोनों को ग्रहण करना होता है। मन्नत पूरी होने पर अगले साल श्रद्धा अनुसार चढ़ावा चढ़ाना होता है। माता को पशुबलि और शराब चढ़ाना वर्जित है।
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दूसरी मान्यता भविष्य के अनुमान को लेकर है। एक दिन की पूजा के बाद जान मंदिर बंद कर दिया जाता है तो मंदिर के बाहर सतह पर बिछा दी जाती है। इसके अगले साल इस रेत पर जो चन्ह मिलते हैं, उससे पुजारी अगले साल के भविष्य का अनुमान लगाते हैं। यदि कमल का निशान हो तो धन संपदा में बढ़ोत्तरी, हाथी के पांव के निशान हो तो उन्नति, घोड़ों के खुर के निशान हों तो युद्घ, बाघ के पैर के निशान हो तो आतंक, बिल्ली के पैर के निशान हो तो भय तथा मुर्गियों के पैर के निशान होने पर अकाल होने का संकेत माना जाता है।
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