क्या आप जानतें हैं इन पंचदेवों की पूजा के बारे में ?

Edited By Lata,Updated: 23 Apr, 2019 05:51 PM

about the worship of panchdevas

वैसे तो हिंदू धर्म में प्रथम पूज्य देव भगवान गणेश को माना जाता है। सनातन परंपरा में प्रत्यक्ष देवता सूर्य, प्रथम पूज्य भगवान गणेश, देवी दुर्गा, देवाधिदेव

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वैसे तो हिंदू धर्म में प्रथम पूज्य देव भगवान गणेश को माना जाता है। सनातन परंपरा में प्रत्यक्ष देवता सूर्य, प्रथम पूज्य भगवान गणेश, देवी दुर्गा, देवाधिदेव भगवान शिव और भगवान विष्णु, पंचदेव कहलाते हैं। सनातन परंपरा में आस्था रखने वाले व्यक्ति को इन सभी की पूजा करना अनिवार्य माना जाता है। मान्यता है कि प्रतिदिन पूजा के दौरान पंचदेव का ध्यान एवं मंत्र जप करने वाले पर इन सभी की कृपा बरसती है और उसके घर में सुख-समृद्धि का वास बना रहता है। ऐसा में अगर आप नहीं जानते इनकी पूजा व मंत्रों के बारे में तो आज हम आपको इनकी पूजा की विधि के बारे में बताएंगे।
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गणेश जी का ध्यान मंत्रः
शास्त्रों में इन्हें पंचदेवता पंचभूतों के स्वामी कहा जाता है। इनमें गणपति जलतत्व के अधिपति हैं, इसलिए उनकी सबसे पहले पूजा करने का विधान हैं।
प्रात: स्मरामि गणनाथमनाथबन्धुं सिन्दूरपूरपरिशोभितगण्डयुग्मम्।
उद्दण्डविघ्नपरिखण्डनचण्डदण्ड - माखण्डलादिसुरनायकवृन्दवन्द्यम्।।
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विष्णु जी का ध्यान मंत्रः
भगवान विष्णु को आकाश तत्त्व के स्वामी कहा गया है, इसलिए उनकी साधना शब्दों अर्थात् मंत्रादि के माध्यम से करने का विधान है।
प्रात: स्मरामि भवभीतिमहार्तिनाशं नारायणं गरुडवाहनमब्जनाभम्। महाभिभृतवरवारणमुक्तिहेतुं चक्रायुधं तरुणवारिजपत्रनेत्रम्॥
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शिव जी का ध्यान मंत्रः
भगवान शिव पृथ्वी तत्त्व के स्वामी है, ऐसे में पंचदेवों में उनकी शिवलिंग के रुप में पूजा करने का विधान है। 
प्रातः स्मरामि भवभीतिहरं सुरेशं गङ्गाधरं वृषभवाहनमम्बिकेशम् ।
खट्वाङ्गशूलवरदाभयहस्तमीशं संसाररोगहरमौषधमद्वितीयम् ॥
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देवी जी का ध्यान मंत्रः
चूंकि अग्नि तत्त्व की स्वामिनी देवी दुर्गा हैं, इसलिए शक्ति की साधना अग्निकुंड के हवन आदि के माध्यम से करने का विधान है। 
प्रात: स्मरामि शरदिन्दुकरोज्ज्वलाभां सद्रत्नवन्मकरकुण्डलहारभूषाम् ।
दिव्यायुधोर्जितसुनीलसहस्त्रहस्तां रक्तोत्पलाभचरणां भवतीं परेशाम् ।।
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सूर्यदेव जी का ध्यान मंत्रः
प्रत्यक्ष देवता भगवान सूर्यदेव वायु तत्व के स्वामी हैं। ऐसे में उन्हें पवित्र जल से अर्घ्य एवं नमस्कार के माध्यम से साधना की जाती है।
प्रातः स्मरामि खलु तत्सवितुर्वरेण्यं, रूपं हि मण्डलमृचोअथ तनुर्यन्जूषि। 
सामानि यस्य किरणा: प्रभावादिहेतुं, ब्रह्माहरात्मकमलक्ष्यमचिन्त्यरूपम्।।

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