Edited By Jyoti,Updated: 20 Oct, 2019 08:35 AM
प्रत्येक वर्ष कार्तिक मास की अष्टमी यानि चतुर्थी तिथि के ठीक 4 दिन बाद अहोई अष्टमी व्रत मनाया जाता है। इस साल ये व्रत 21 अक्टूबर सोमवार तो पड़ रहा है। मान्यता है कि इस व्रत का संबंध मां गौरी से है।
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प्रत्येक वर्ष कार्तिक मास की अष्टमी यानि चतुर्थी तिथि के ठीक 4 दिन बाद अहोई अष्टमी व्रत मनाया जाता है। इस साल ये व्रत 21 अक्टूबर सोमवार तो पड़ रहा है। मान्यता है कि इस व्रत का संबंध मां गौरी से है। मां गौरी के अहोई स्वरुप की पूजा अहोई अष्टमी के दिन की जाती है। परंपराओं के अनुसार इस दिन जिन महिलाओं के लिए संतान नहीं होती वो संतान की कामना से व अन्य महिलाएं अपने संतान की तंदरुस्ती आदि की कामना से व्रत रखती हैं। धार्मिक मान्यताओं की मानें तो अहोई अष्टमी के दिन चांदी की अहोई बनाकर उसकी पूजा करने का विधान है। इसके अलावा अहोई में चांदी के मनके भी डाले जाते हैं। बताया जाता है हर व्रत में एक-एक करके संख्या बढ़ती जाती है। ज्योतिष विद्वानों का मानना है कि इस साल अहोई अष्टमी पर सर्वार्थ सिद्धि योग बन रहा है, जो काफी फलदायक माना जा रहा है।
अहोई अष्टमी पूजा विधि
गोबर से या चित्रांकन के द्वारा कपड़े पर आठ कोष्ठक की एक पुतली भी बनाएं फिर इस पर उनके(कोष्क बच्चों की आकृतियां बनाएं तथा और शाम को उसकी पूजा करें है। रात्रि में तारों को अर्ध्य देकर व्रत खोलें।
परंतु इससे पहले अहोई अष्टमी के दिन माता अहोई से पहले भगवान श्री गणेश की पूजा अर्चना करें। साथ ही साथ उन्हें मिष्ठान का भोग ज़रूर लगाएं।
इन्हें लाल फूल और सिंदूर काफी पसंद है, इसलिए उन्हें लाल फूल और सिंदूर भी चढ़ाएं। पूजा के दौरान घर के बच्चों को साथ अवश्य बैठाएं और भगवान को भोग लगाकर सबसे पहले प्रसाद उन्हें दें।
ध्यान रखें ये बातें-
इस दिन सास-ससुर के लिए बायना ज़रुर निकालें।
परंतु अगर आपके सास-ससुर न हो तो किसी पंडित या बुजुर्ग को भी बायना दे सकते हैं।
व्रत कथा सुनते समय अपने हाथ में 7 प्रकार का अनाज ज़रूर रखें तथा पूजा के बाद गाय को अनाज खिलाएं।