Edited By Lata,Updated: 05 May, 2019 02:40 PM
इस संसार में वृंदावन की धरती को शास्त्रों में सबसे पावन व पवित्र माना गया है। क्योंकि यहां भगवान कृष्ण ने बहुत सी लीलाएं की हैं,
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इस संसार में वृंदावन की धरती को शास्त्रों में सबसे पावन व पवित्र माना गया है। क्योंकि यहां भगवान कृष्ण ने बहुत सी लीलाएं की हैं, जिनका वर्णन आज तक लोगों की जुबान पर कायम है। दूर-दूर से लोग यहां भगवान की लीलाओं का स्मरण करने आते हैं और फिर यही के हो के रह जाते हैं। कहते हैं जो कोई भक्त एक बार भी इस पावन धाम में आ जाए वे कभी भी वपिस नहीं लौटता, यहीं पर अपना सारा जीवन गुजार देता है। आज हम बात करेंगे वृंदावन स्थित विश्व प्रसिद्ध बांके बिहारी मंदिर के बारे में। कहते हैं कि बांके बिहारी की एक झलक पाने के लिए लोग सुबह से शाम तक लम्बी कतारों में लगे रहते हैं। उनके दर्शन करना बहुत ही मुश्किल होता है, क्योंकि वहां करोड़ों की भीड़ उनके दर्शनों के लिए हमेशा मौजूद रहती है। लेकिन क्या कभी किसी ने इस बात पर ध्यान दिया है कि कभी भी उनके चरणों के दर्शन नहीं होते हैं। इसके पीछे की वजह शायद ही कोई जानता होगा। तो चलिए आज हम आपको बिहारी जी के चरणों के दर्शन न होने के पीछे की वजह बताते है।
दरअसल बात कुछ ऐसी है कि भगवान के दर्शन करना तो बेहद कठिन है ही लेकिन इसके साथ-साथ उनके चरणों के दर्शन कर पाना भी मुश्किल है, क्योंकि ये केवल साल में एक ही दिन होते हैं और वो दिन होता है अक्षय तृतीया का दिन जोकि इस बार 07 मई 2019 को मनाया जा रहा है। मान्यताओं के अनुसार इस दिन भगवान को अपने सिंहासन से थोड़ा सा आगे लाकर भगवान के चरणों के दर्शन उनके भक्तों को करवाए जाते हैं। बिहारी जी की विशेष कृपा पाने के लिए इस दिन उनके भक्त दुर्लभ दर्शन पाने के लिए दूर-दूर से आते हैं। कहते हैं कि चरण दर्शन करने से भक्तों पर भगवान की कृपा बरसती है।
अगर आपने देखा होगा कि बिहारी जी के चरण पूरा साल वस्त्रों व फूलों से ढके रहते हैं और केवल अक्षय तृतीया के दिन ही उनके चरणों के दर्शन करने को मिलते हैं। कहते हैं कि जो लोग इस विशेष दिन पर बांके बिहारी मंदिर में होते हैं, वे बहुत ही सौभाग्यशाली माने जाते हैं। इस दिन एक परंपरा जिसे चंदन यात्रा के नाम से जाना जाता है, वो इसी दिन शुरू होती है और जो 21 दिनों तक चलती है। जिसमें भगवान के पूरे शरीर पर चंदन का लेप लगाया जाता है और उसकी तैयारी महीनों पहले से ही शुरू हो जाती है। चंदन के लेप में कपूर, केसर, गुलाबजल और इत्र मिलाकर भगवान को लगाया जाता है। इस दिन मंदिर प्रांगण में बहुत ही भीड़ देखने को मिलती है।
चरण दर्शन को लेकर शास्त्रों में एक कथा प्रचलित है जिसके अनुसार एक बार मंदिर में भगवान के चरण दर्शन करते हुए एक संत बड़े भाव के साथ भजन गा रहे थे कि 'बिहारी जी के चरण कमल में नयन हमारे अटके'। आस-पास के लोग उनके इस भजन को सुनकर प्रसन्न हो रहे थे। उन्हीं में से एक भक्त जिसे वो भजन बहुत ही अच्छा लगा तो उसने वहीं भजन गाना शुरू कर दिया, लेकिन वो उस भजन के बोल भूल गया और उसे जिस तरह से याद आया उसने प्रेम भाव में वहीं गाना शुरू कर दिया और वो गा रहा था कि 'बिहारी जी के नयन कमल में चरण हमारे अटके'। वह व्यक्ति भगवान की भक्ति में इतना लीन हो गया कि वह भूल गया कि वह क्या गा रहा है। जैसा कि आप सब जानते ही हैं भगवान तो अपने भक्तों के भाव के भूखे होते हैं, उन्हें किसी और चीज़ से कोई स्नेह नहीं होता है। उस व्यक्ति के इस भाव को देखकर भगवान से रहा न गया और वह उसके सामने प्रकट हो गए और कहने लगे कि मैंने बहुत से भक्त देखे लेकिन तुम्हारे जैसा किसी का भाव नहीं देखा। लोगों के तो नयन मेरे चरणों में अटक जाते हैं लेकिन तुम एक ऐसे हो जिसने मेरे नयनों को अपने चरणों में अटका दिया है। पहले तो उस व्यक्ति को समझ नहीं आया, लेकिन बाद में उसे एहसास हुआ तो उसे अपनी भूल की समझ आई और पता चला कि बिहारी जी तो केवल अपने भक्तों के भाव के भूखे हैं और तभी से अक्षय तृतीया के दिन उनके चरण दर्शन की परंपरा शुरू हुई।