Edited By Jyoti,Updated: 09 May, 2021 04:21 PM
सनातन धर्म के अनुसार बहुत से दिन खास व पावन होते हैं, इन्हीं में से एक है अक्षय तृतीया का दिन। हिंदू धर्म में इस दिन का अधिक महत्व है। कहा जाता है कि यह दिन दान-पुण्य आदि जैसे
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सनातन धर्म के अनुसार बहुत से दिन खास व पावन होते हैं, इन्हीं में से एक है अक्षय तृतीया का दिन। हिंदू धर्म में इस दिन का अधिक महत्व है। कहा जाता है कि यह दिन दान-पुण्य आदि जैसे कार्यों के लिए सबसे उत्तम होता है। बल्कि ज्योतिष विद्वान आदि बताते हैं कि इस दिन किया गया कोई भी पुण्य कार्य विफल नहीं होता। बता दें प्रत्येक वर्ष अक्षय तृतीया पर्व वैशाख मास के कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि तो मनाया जता है, जो इस वर्ष 14 मई को पड़ा रहा है। दान-पुण्य आदि कार्यों के अलावा इस दिन मां लक्ष्मी की आराधना करना अति आवश्यक होता है। इन्हें प्रसन्न करने के लिए तथा जीवन में पैसों से जुड़ी समस्याओं को दूर करने के लिए इस दिन खासतौर सोने चांदी की खरीददारी की जाती है। इससे संबंधित एक मान्यता के अनुसार इस दिन खरीदा सोना-चांदी बढ़ता जाता है कहने का भाव है उसमें वृद्धि होती है। धार्मिक किंवदंति है कि इसी दिन से सतयुग और त्रेतायुग का प्रारंभ हुआ था। इसके अलावा ये भी कहा जाता है कि द्वापर युग का समापन भी हुआ था। आइए जानते हैं इस दिन से जुड़ी अन्य खास बातें-
धार्मिक मान्यता है कि इस दिन अपनी क्षमता के अनुसार किसी जरूरतमंद की मदद आवश्य करनी चाहिए। और वर्तमान समय में तो कोरोना के चलते बहुत से लोगों को कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। ऐसे में अगर आप किसी की मदद कर सकें तो जरूर करें।
इसके अलावा पित्तरों के नाम पर जल, शक्कर, सत्तू, पंखा, छाता व फलादि का दान करना चाहिए। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार ऐसा करना बहुत शुभ व फलदायी होता है।
जो व्यक्ति अक्षय तृतीया के दौरान ये कार्य करता है, उस पर पितरों की कृपा तो होती ही है, साथ ही साथ देवी लक्ष्मी के आशीर्वाद के प्रभाव से जीवन में धन संबंधी परेशानियों से निजात मिलती है। साथ ही साथ अक्षय पुण्य की भी प्राप्ति होती है।
बता दें इस दिन जल से भरा हुआ घड़ा, गुड़, बर्फी, श्वेत वस्त्र, शक्कर, चावल तथा चांदी आदि का दान सबसे शुभ माना जाता है।
धार्मिक मान्यताएं हैं कि अक्षय तृतीया के 10 महाविद्या में से नवमी महाविद्या मांतगी देवी का प्रार्दुभाव हुआ था।
इस दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की प्रतिमा पर अक्षत चढ़ाना चाहिए। माना जाता है कि ऐसा करने से पितृदोष से मुक्ति मिलती है।
इसके अलावा पितरों के नाम से पिंडदान करने से पितरों का आशीर्वाद प्राप्त होता है तथा घर परिवार के कष्ट दूर होते हैं।
अगर किसी की कुंडली में पितृ दोष हो तो उसे पिंडदान के अलावा पितरों की मुक्ति के लिए गीता के 7 वें अध्याय का पाठ करना चाहिए।