Ambedkar Jayanti 2020: आज जरूरत है बाबा साहब के बताए रास्ते पर चलने की

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 14 Apr, 2020 05:58 AM

ambedkar jayanti 2020

युगपुरुष बाबा साहिब भीमराव अम्बेदकर का जन्म 14 अप्रैल 1891 को महू, जो बड़ौदा रियासत थी (इस समय यह मध्य प्रदेश के जिला इंदौर की एक छावनी है), में सूबेदार राम जी के घर माता भीमा बाई की कोख से हुआ।

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Ambedkar Jayanti 2020: युगपुरुष बाबा साहिब भीमराव अम्बेदकर का जन्म 14 अप्रैल 1891 को महू, जो बड़ौदा रियासत थी (इस समय यह मध्य प्रदेश के जिला इंदौर की एक छावनी है), में सूबेदार राम जी के घर माता भीमा बाई की कोख से हुआ। जिस समय बाबा साहिब का जन्म हुआ, उस समय सामाजिक कुरीतियां, भेदभाव और छुआछूत चरम सीमा पर थे। बेशक रामजी सूबेदार सरकारी नौकरी करते थे, इसके बावजूद उनके घर की आर्थिक स्थिति बहुत नाजुक थी, जिसका मुख्य कारण सामाजिक असमानता और संयुक्त बड़ा परिवार था। बाबा साहिब सूबेदार की 14वीं संतान थे। उनके जन्म के समय देश के अधिकतर हिस्सों में प्लेग नामक भयानक लाइलाज बीमारी फैली हुई थी। जब बाबा साहिब 5 साल के थे तो उनकी माता का निधन हो गया, इसलिए उनका पालन-पोषण मुख्य रूप से उनकी बुआ ने किया।

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सूबेदार राम जी कबीरपंथी विचारधारा से प्रभावित थे। ऐसी गंभीर परिस्थितियों में बाबा साहिब अम्बेदकर ने अपने दृढ़ निश्चय, कड़ी मेहनत, साफ-सुथरे चरित्र को अपना मुख्य हथियार बनाते हुए देश के लिए ईमानदारी से काम किया। इसीलिए आज उनकी ख्याति देश के महानायकों में होती है। बाबा साहिब अम्बेदकर 7 भाषाएं पढ़-लिख और बोल सकते थे। उनका नाम विश्व के 6 प्रमुख विद्वानों में शामिल है। सद्गुरु कबीर, महात्मा ज्योतिराव फुले, तथागत बुद्ध इन तीनों को बाबा साहिब अम्बेदकर अपना गुरु मानते थे।

उन्होंने अपने गहन अध्ययन और चिंतन से यह साबित कर दिया कि छुआछूत, भेदभाव, असमानता ऐसी बीमारियां हैं जिनके कारण भारत के लोग तरक्की नहीं कर पाए और देश कई बार गुलाम बना। इसलिए बाबा साहिब ने सबसे पहले छुआछूत, भेदभाव को खत्म करने के लिए कड़ा संघर्ष किया। उन्होंने अंग्रेजों की गुलामी को अस्वीकार करते हुए भी कड़ा संघर्ष करते हुए इसी कड़ी में दूसरी गोलमेज कान्फ्रैंस में कहा था कि हमें पूर्ण आजादी चाहिए।

बाबा साहिब का मानना था कि समानता और स्वराज प्रत्येक व्यक्ति के जन्मसिद्ध अधिकार हैं। उन्होंने देश के तत्कालीन विद्वानों और नेताओं के सामने ऐसे भारत की तस्वीर रखी जिसका मुख्य आधार हर भारतीय के लिए न्याय, सुरक्षा तथा पूर्ण तरक्की के समान अवसर प्रदान करना था। अपने समकालीन नेताओं के कड़े विरोध के बावजूद वह भारत को ऐसा खूबसूरत और मजबूत संविधान देने में सफल हुए, जो युद्ध और शांति दोनों समयों में अति उपयुक्त भूमिका निभाता है।
 
बाबा साहिब संविधान में रोटी, कपड़ा, मकान, स्वास्थ्य, शिक्षा और नौकरियों को भी मूलभूत अधिकारों में दर्ज करवाना चाहते थे। बाबा साहिब देश में जनसंख्या नियंत्रण के लिए भी कड़ा कानून बनाना चाहते थे। उन्होंने 15 अगस्त 1947 से पहले ही भारत-पाकिस्तान की आबादी के अदल-बदल के लिए कई सुझाव दिए, जिन्हें उस समय के दोनों ओर के नेताओं ने मानने से इंकार कर दिया। अगर बाबा साहिब के सुझावों को मान लिया होता तो आज दोनों देशों के 10 लाख निर्दोष लोगों के खून के धब्बे हमारे देश की स्वतंत्रता को खतरा और विकास में मुख्य रुकावट न होते।

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इतना ही नहीं, बाबा साहिब अम्बेदकर ने पंडित नेहरू को भी स्पष्ट रूप से कहा था कि बेशक तथागत बुद्ध मेरे गुरु हैं और चीन बौद्ध देश है, मगर हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि दो विकासशील देशों के बीच पंचशील का संदेश अधिक देर तक कारगर साबित नहीं होगा। इसलिए हमें अपने देश की सीमा को चीन के लिए पूरा खोलने की बजाय बेहद सुरक्षित करना होगा लेकिन नेहरू तथा उनके मंत्रिमंडल की ओर से बाबा साहिब के सुझाव पर कोई ध्यान नहीं दिया गया, जिसका खमियाजा भारत को तब भुगतना पड़ा, जब 1962 में चीन ने आक्रमण करके भारत की हजारों किलोमीटर जमीन हड़प ली, जो आज भी उसके कब्जे में है।

ऐसे महानायक के 129वें जन्मोत्सव पर हमें प्रण लेना चाहिए कि उनके बताए मार्ग पर चल कर देश के लिए जीना ही हमारा परम धर्म और मुख्य कर्म है। बाबा साहिब एक महान अर्थशास्त्री थे, सरकार को उनके अनुभव से सीख लेकर इस समय देश की गिरती अर्थव्यवस्था को मजबूत करके भारत को खुशहाली की ओर ले जाना चाहिए। यदि बाबा साहिब अम्बेदकर की विचारधारा के प्रचार-प्रसार में समय लगाया जाए तो देश में पाखंड, वहमों-भ्रमों की चल रही आंधी को काफी हद तक रोका जा सकता है।

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