Edited By Lata,Updated: 04 Nov, 2019 10:55 AM
हिंदू पंचांग के अनुसार कार्तिक महीने की शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को आंवला पूजन के रूप में मनाया जाता है
शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
हिंदू पंचांग के अनुसार कार्तिक महीने की शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को आंवला पूजन के रूप में मनाया जाता है और इसे अक्षय नवमी के नाम से भी जाना जाता है। शास्त्रों के अनुसाप इस दिन आंवला के पेड़ के नीचे बैठकर भोजन करने किया जाता है। ऐसा करने से व्यक्ति के समस्त रोगों का नाश होता है।
हिंदू धर्म में ये दिन बहुत ही खास महत्व रखता है। इस दिन आंवले के पेड़ का पूजन कर परिवार के लिए आरोग्यता व सुख-समृद्धि की कामना की जाती है। इस दिन किया गया तप, जप ,दान इत्यादि व्यक्ति को सभी कष्टों से मुक्त करता है तथा सभी मनोकामनाओं की पूर्ती करने वाला होता है। पदम पुराण के अनुसार अक्षय नवमी के दिन आंवले के वृक्ष में भगवान विष्णु एवं शिवजी का निवास होता है। शास्त्रों के अनुसार अक्षय नवमी के दिन किया गया पुण्य कभी समाप्त नहीं होता है। इसके साथ ही आंवले का पूजन करने से इंसान को भगवान शिव व श्री हरि की कृपा एक साथ प्राप्त होती है। चलिए आगे जानते हैं इसके पीछे जुड़ी एक कथा।
धार्मिक कथाओं के अनुसार एक बार माता लक्ष्मी पृथ्वी पर भ्रमण करने आईं। रास्ते में भगवान विष्णु एवं शिव की पूजा एक साथ करने की उनकी इच्छा हुई। माता लक्ष्मी ने विचार किया कि एक साथ विष्णु और शिव की पूजा कैसे हो सकती है? तभी उन्हें ख्याल आया कि तुलसी और बेल के गुण एक साथ आंवले में पाएं जाते हैं। तुलसी भगवान विष्णु को प्रिय है और बेल शिव को। आंवले के वृक्ष को विष्णु और शिव का प्रतीक चिह्न मानकर मां लक्ष्मी ने आंवले के वृक्ष की पूजा की। पूजा से प्रसन्न होकर विष्णु और शिव प्रकट हुए। लक्ष्मी माता ने आंवले के वृक्ष के नीचे भोजन बनाकर विष्णु और भगवान शिव को भोजन कराया। इसके बाद मां ने भोजन किया। जिस दिन यह घटना हुई उस दिन कार्तिक शुक्ल नवमी थीऔर तभी से यह परंपरा चली आ रही है। अक्षय नवमी के दिन अगर आंवले की पूजा करना और आंवले के वृक्ष के नीचे बैठकर भोजन बनाना और खाना संभव नहीं हो तो इस दिन आंवला जरूर खाना चाहिए।