Edited By Lata,Updated: 24 Feb, 2020 11:08 AM
क्रोध को मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु कहा गया है क्योंकि यह हमारे जीवन में लक्ष्यपूॢत में सबसे बड़ा बाधक होता है।
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क्रोध को मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु कहा गया है क्योंकि यह हमारे जीवन में लक्ष्यपूॢत में सबसे बड़ा बाधक होता है। क्रोध की अवस्था में हम एकाग्र नहीं हो सकते और एकाग्रता के अभाव में किसी भी कार्य में सफलता प्राप्त करना असंभव है। इस अवस्था में व्यक्ति के शरीर में स्थित अंत:स्रावी ग्रंथियों से ऐसे हार्मोन्स उत्सॢजत होकर खून में मिल जाते हैं जो हमारे शरीर के लचीलेपन को समाप्त कर उसे कठोर बना डालते हैं। इससे हम अपनी मांसपेशियों और अंगों पर नियंत्रण खो बैठते हैं। इससे कार्य करने की हमारी स्वाभाविक गति व सहजता नष्ट हो जाती है।
जिस क्षण व्यक्ति के मस्तिष्क पर क्रोध अपना अड्डा जमा लेता है, उसी क्षण वह विचारशक्ति से शून्य हो जाता है।
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विचारशक्ति के अभाव में कोई कैसे सही निर्णय ले सकता है? किसी भी कार्य की सफलता उसके संकल्प पर निर्भर करती है। क्रोधावस्था में व्यक्ति का संकल्प क्षीण हो जाता है जिससे सफलता संदिग्ध हो जाती है। क्रोध की अवस्था में व्यक्ति भूल जाता है कि उसे क्या करना है और सही न करने पर क्या परिणाम होगा।
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शरीर और मन दोनों स्वस्थ हों तो आम तौर पर क्रोध की अधिकता नहीं होती। ऐसे ही किसी सृजनात्मक कार्य के दौरान व्यक्ति को क्रोध नहीं आता। इस आधार पर कहा जा सकता है कि क्रोध से बचे रहने का एक तरीका यह है कि अधिक से अधिक सृजनात्मक गतिविधियों में लगे रहें। क्रोध न आना अच्छी बात है पर किसी कारण यदि क्रोध आता है तो उसे दबाने की बजाय उसे व्यक्त करने का उचित विकल्प तलाशा जाना चाहिए। इसे पूरी तरह रोक देना स्वास्थ्य के लिए नुक्सानदायक हो सकता है।