Smile please: क्या मृत्यु ही अंत है ?

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 25 Jan, 2022 10:41 AM

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आज भी यह यक्ष प्रश्र प्रासंगिक है कि जीवन का सबसे बड़ा आश्चर्य क्या है? उत्तर भी वैसा ही बना हुआ है-मानव जानता है मृत्यु निश्चित है फिर भी माया के पाश में बंधा अमूल्य जीवन को नष्ट कर देता है। हम जितना शुद्ध जन्म लेते हैं, उससे अशुद्ध मरते हैं। क्यों?

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Anmol Vachan- आज भी यह यक्ष प्रश्र प्रासंगिक है कि जीवन का सबसे बड़ा आश्चर्य क्या है? उत्तर भी वैसा ही बना हुआ है-मानव जानता है मृत्यु निश्चित है फिर भी माया के पाश में बंधा अमूल्य जीवन को नष्ट कर देता है। हम जितना शुद्ध जन्म लेते हैं, उससे अशुद्ध मरते हैं। क्यों? इसका उत्तर है  ‘मानव का अज्ञान’।

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Anmol vichar- हमें जीवन मिला है जन्म और मृत्यु इसके दो किनारे हैं तथा बीच में सेतुरूपी जीवन फैला है। यह तो निश्चित है कि मानव जैसा है वह उसकी अंतिम स्थिति नहीं है। ईश्वर ने अंत भी बता दिया है।

Srimad Bhagavad Gita- क्या मृत्यु ही अंत है? नहीं। श्री कृष्णा गीता में कहते हैं- जैसे मनुष्य पुराने वस्त्रों को त्याग कर दूसरे नए वस्त्रों को ग्रहण करता है वैसे ही जीवात्मा पुराने शरीर को त्याग कर दूसरे नए शरीर को प्राप्त होता है।’’
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Religious Context- अज्ञान के वशीभूत मानव आवागमन के चक्र में पड़ा रहता है। हमारे ही मध्य बुध, महावीर, कृष्ण, मीरा, नानक, कबीर, गांधी तथा विवेकानंद जैसे लोगों के  स्मरण मात्र से आत्मा में सुगंधि तथा शांति फैल जाती है। दूसरी ओर दुर्योधन, हिटलर, नादिरशाह, महमूद गजनी तथा लाडेन भी हैं जिनके स्मरण मात्र से हृदय में क्रोध फैल जाता है।

Inspirational Context- भगवान ने हमें भी विकल्प दिए हैं। हमें कैसा जीवन जीना है यह हमारे हाथ में है। स्वतंत्र संकल्प हमें वरदान स्वरूप मिला हुआ है। हम चैतन्यवान हैं, चुनाव में स्वतंत्र है। उत्तरादायित्व हमारा है कि हम किस पथ के पथिक बनें।

सांस चलने या हृदय धड़कने का नाम ही जीवन नहीं है। पद, धन, यश और वासानपूर्ति को भी जीवन न मानें। जीवन तो होश है, आनंद है, ज्ञान है, प्रज्ञा है, आचरण है। एक ही उपाय है हमें अपने अंदर के बुध को पहचानना है । अंत में मौत सामने रहेगी और सारे अवसर जाते रहेंगे।

जीवन एक मौका है अपने भीतर के दीए को जलाने का, प्राणों की आहुति देने का। आत्मज्ञानी बनने को हम धरती पर आए हैं। बुध ने कहा है ‘अप्पदीपोभव’। अपना दीया खुद बनो। अपने सच्चे रूप को पहचानना ही जीवन की सार्थकता है।

जिस प्रकार बीज में वृक्ष छिपा है हममें भी अनंत संभावनाएं छिपी हैं। आत्मा की सुगंधि को पहचनाने के लिए हमें क्रोध, लोभ, मोह, वासना, तृष्णा एवं अहंकार को त्यागना होगा। शक्ति हमारी इसी में व्यय हो जाती है। शक्ति का रूपांतरण करके, ऊपर की ओर उठना है।

तभी अज्ञान का पर्दा हटेगा। ज्ञान की किरण फूटेगी। हमें जीवन की सुगंधी को पहचानना है ताकि हमारा जीवन आनंदमय हो। ज्ञान का दीपक स्वयं को तो प्रकाशित करता है साथ ही दूसरों को भी उजाला देता है। मानव कल्याण में जीने वाले मनुष्य के जीवन का प्रयोजन व्यापक होता है। यही आत्मिक दृष्टि है। इसी में शाश्वत आनंद की प्राप्ति है।

हम चैतन्यवान मानव हैं। हम पर अस्तित्व ने विराट दायित्व दिया है। सारा अस्तित्व हममें खिलने को, प्रकट होने को आतुर है। हमने अपने अंतर के कपाट ही बंद कर रखे हैं। इन्हें खोलना है ताकि परमात्मा शक्ति हममें उतार सके। बीज वृक्ष बन सकें, उनमें  ज्ञानरूपी फल लग सकें, दूसरों को छांव मिल सके। यही जीवन की सार्थकता है।

 

 

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