Edited By Jyoti,Updated: 08 Aug, 2022 05:21 PM
इंसान जब तक अपने मन के विकारों का त्याग नहीं करेगा, उसे प्रभु का प्यार प्राप्त नहीं होता। लोभ से प्रभु भक्ति करने वाले को कभी सही रास्ता नहीं मिलता। सच्चे मन से की गई भक्ति का फल अवश्य मिलता है। की हुई नेकी और किया भजन कभी बेकार नहीं जाता जरूर अपना
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अनमोल वचन
इंसान जब तक अपने मन के विकारों का त्याग नहीं करेगा, उसे प्रभु का प्यार प्राप्त नहीं होता। लोभ से प्रभु भक्ति करने वाले को कभी सही रास्ता नहीं मिलता। सच्चे मन से की गई भक्ति का फल अवश्य मिलता है। की हुई नेकी और किया भजन कभी बेकार नहीं जाता जरूर अपना रंग दिखाता है। —संत त्रिलोचन दास
बेटियां समाज का आधार व बहुमूल्य धरोहर हैं। महिलाएं देश की प्रगति में पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिला कर कार्यरत हैं। अपने अधिकारों के लिए जागरुक रहें। डर को त्याग कर कदम आगे बढ़ाना सीखें। अपने आपको इस तरह ताकतवर बनाएं कि सामने वाला गलत करने से पहले सौ बार सोचे।
जिस मनुष्य में दूसरे के लिए भलाई करने की लगन है प्रेम भाव उत्साह और सेवा भावना की आदत है, सोच ऊंची है, ईश्वर ऐसे लोगों को दिल से प्यार करते हैं। आशावादी भावनाएं बनाए रखें, अध्यात्म चिंतन करने से मनुष्य द्वंद्वों से बच सकता है। जहां सद ज्ञान का दिव्य प्रकाश है वहां अंधकार नहीं ठहर सकता। परोपकार से आत्म विश्वास बढ़ता है।—डा. राम चरण महेंद्र
अहंकार आत्मा को नरक, पशु योनि में डालता है। अहंकार गुणी व्यक्ति को भी दुर्गुणी बना देता है। यह मनुष्य की शांति भंग कर देता है। यह मनुष्य के हृदय में निवास करता है। यह बुद्धि को नष्टï कर देता है और मनुष्य को अंधा बना देता है। अहंकारी का कोई मित्र नहीं होता। इसके अपने भी बेगाने बन जाते हैं। —आशीष मुनि
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इस अनमोल जिंदगी को दिल से जिएं पशु-पक्षियों, दोस्तों, शत्रुओं को भी प्यार करें। खुद से भी प्यार करें। आपको खबर नहीं कि भविष्य क्या लेकर आएगा। क्या पता कल रहेंगे कि नहीं। खेलो-कूदो। किसी को चोट न पहुंचाएं। अंत में सब ठीक हो जाएगा।
जो केवल अपनी स्वार्थ साधना के लिए धन का संचय करते हैं वे दुर्जन हैं। महापुरुष का धन तो निश्चित ही दूसरों के उपकार के लिए होता है। —भगवान गौतम बुद्ध
यदि सद्गुरु मिल जाएं तो जानो सब मिल गए, फिर कुछ मिलना शेष नहीं रहा। यदि सद्गुरु नहीं मिले तो समझो कोई नहीं मिला, क्योंकि माता-पिता, पुत्र और भाई तो घर-घर में होते हैं। ये सांसारिक नाते सभी को सुलभ हैं, परंतु सद्गुरु की प्राप्ति दुर्लभ है। —सद्गुरु कबीर
जागृत और स्वप्नावस्था की भांति सुषुप्ति में भी आत्मा जागृत रहती है, क्योंकि अपरिवर्तनशील होने के कारण इसकी चैतन्य शक्ति का कभी लोप नहीं होता। —आदिगुरु शंकराचार्य