Edited By Punjab Kesari,Updated: 19 Oct, 2017 12:04 PM
दीपावली से अगले दिन कार्तिक मास शुक्लपक्ष प्रतिपदा को अन्नकूट महोत्सव मनाया जाता है। इस दिन गोवर्धन की पूजा कर भगवान विष्णु जी की प्रसन्नता प्राप्त होती है। गोवर्धन रूप में श्री भगवान को छप्पन भोग लगाया जाता है। द्वापर में अन्नकूट के दिन इंद्र की...
दीपावली से अगले दिन कार्तिक मास शुक्लपक्ष प्रतिपदा को अन्नकूट महोत्सव मनाया जाता है। इस दिन गोवर्धन की पूजा कर भगवान विष्णु जी की प्रसन्नता प्राप्त होती है। गोवर्धन रूप में श्री भगवान को छप्पन भोग लगाया जाता है। द्वापर में अन्नकूट के दिन इंद्र की पूजा होती थी। भगवान श्रीकृष्ण की प्रेरणा से ब्रजवासियों ने गोवर्धन पर्वत की पूजा की। गोप-ग्वालों ने बहुत से पकवान गोवर्धन को अर्पित किए। स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने गोवर्धन का रूप धारण कर उन पकवानों को ग्रहण किया।
जब इंद्र को इस बात का पता चला तो उन्होंने क्रुद्ध होकर प्रलयकाल के सदृश मूसलाधार वृष्टि की। यह देख भगवान श्री कृष्ण जी ने गोवर्धन पर्वत को अपनी उंगली पर धारण किया।
उसके नीचे सब ब्रजवासी, ग्वाल-बाल और गाय-बछड़े आदि आ गए। लगातार सात दिन की वर्षा से जब ब्रज पर कोई प्रभाव न पड़ा तो इंद्र को बड़ी ग्लानि हुई। तब ब्रह्मा जी ने इंद्र को श्रीकृष्ण के परब्रह्म परमात्मा होने का रहस्य उजागर किया। तब लज्जित होकर इंद्र ने ब्रज आकर श्रीकृष्ण से क्षमा मांगी। इस अवसर पर ऐरावत ने आकाशगंगा के जल से और कामधेनु गाय ने अपने दूध से भगवान श्री कृष्ण का अभिषेक किया जिससे वह गोविंद कहे जाने लगे।
इस प्रकार गोवर्धन-पूजन श्री भगवान का ही पूजन है। वास्तव में जीव में जैसे-जैसे अहंकार बढ़ता है, वैसे-वैसे वह पतन की ओर जाता है। देवराज इंद्र भी जब अहंकार की चपेट में आ गए। दयावश भगवान श्रीकृष्ण ने इंद्र के अहंकार रूपी रोग की चिकित्सा की। भगवान शंकर स्वयं अपने गणों सहित ब्रज में सम्पन्न हुए गिरि-पूजन में सम्मिलित हुए थे। इंद्र की वर्षा के प्रभाव को निष्फल करने के लिए भगवान श्रीकृष्ण की आज्ञा से सुदर्शन चक्र ने पर्वत के ऊपर स्थित हो जल सम्पात पी लिया और नीचे कुंडलाकार हो शेष जी ने सारा जलप्रवाह रोक दिया। इस प्रकार भगवान ने गोवर्धन के रूप में विराट रूप धर कर, स्वयं की गोवर्धन के रूप में अभिन्नता प्रकट करते हुए अपनी पूजा करवाई।