Edited By ,Updated: 08 Jan, 2015 06:35 AM
हिन्दू धर्म के अनुसार विष्णु परमेश्वर के तीन मुख्य रूपों में से एक रूप हैं। पुराणों में त्रिमूर्ति विष्णु को विश्व का पालनहार कहा गया है। उनका निवास क्षीर सागर है तथा शयन सांप के ऊपर है।
हिन्दू धर्म के अनुसार विष्णु परमेश्वर के तीन मुख्य रूपों में से एक रूप हैं। पुराणों में त्रिमूर्ति विष्णु को विश्व का पालनहार कहा गया है। उनका निवास क्षीर सागर है तथा शयन सांप के ऊपर है।
भगवान विष्णु का स्वरूप सात्विक यानी शांत, कोमल और आनंदमयी बताया गया है। वहीं उनके स्वरूप का दूसरा पहलू यह भी प्रकट होता है कि भगवान विष्णु भयानक और कालस्वरूप शेषनाग पर आनंद मुद्रा में शयन करते हैं। भगवान विष्णु के इसी स्वरूप की महिमा में शास्त्रों में लिखा गया है -
|| शान्ताकारं भुजगशयनं ||
यानी शांत स्वरूप और भुजंग यानी शेषनाग पर शयन करने वाले देवता भगवान विष्णु।
भगवान विष्णु के इस निराले स्वरूप पर गौर करें तो यह सवाल या तर्क भी मन में उठता है कि आखिर काल के साये में रहकर भी क्या कोई बिना किसी बेचैनी के शयन कर सकता हैं? किंतु भगवान विष्णु के इस रूप में मानव जीवन व व्यवहार से जुड़े कुछ रहस्य व छुपे संदेश हैं ।
असल में, जिंदगी का हर पल कर्तव्य और जिम्मेदारियों से जुड़ा होता है। इनमें पारिवारिक, सामाजिक और आर्थिक दायित्व अहम होते हैं किंतु इन दायित्वों को पूरा करने के साथ ही अनेक परेशानियों का सिलसिला भी चलता है, जो कालरूपी नाग की तरह भय, बेचैनी और चिन्ताएं पैदा करता है। इनसे कईं मौकों पर व्यक्ति टूटकर बिखर भी जाता है।
भगवान विष्णु का शांत स्वरूप यही कहता है कि ऐसे बुरे वक्त में संयम, धीरज के साथ मजबूत दिल और ठंडा दिमाग रखकर जिंदगी की तमाम मुश्किलों पर काबू पाया जा सकता है। तभी विपरीत समय भी आपके अनुकूल हो जाएगा। ऐसा व्यक्ति सही मायनों में पुरूषार्थी कहलाएगा। इस तरह विपरीत हालातों में भी शांत, स्थिर, निर्भय व निश्चित मन और मस्तिष्क के साथ अपने धर्म का पालन यानी जिम्मेदारियों को पूरा करना ही विष्णु के भुजंग या शेषनाग पर शयन का प्रतीक है।