Edited By ,Updated: 20 Jan, 2015 09:38 AM
मरने से पहले मौत
जिंदा रहने के लिए भोजन जरूरी है। भोजन से भी ज्यादा पानी जरूरी है, पानी से भी ज्यादा वायु जरूरी है और वायु से भी ज्यादा आयु जरूरी है मगर मरने के लिए
मरने से पहले मौत
जिंदा रहने के लिए भोजन जरूरी है। भोजन से भी ज्यादा पानी जरूरी है, पानी से भी ज्यादा वायु जरूरी है और वायु से भी ज्यादा आयु जरूरी है मगर मरने के लिए कुछ भी जरूरी नहीं है। आदमी यों ही बैठे-बैठे मर सकता है। आदमी उस दिन भी मर जाता है जिस दिन उसकी उम्मीदें और सपने मर जाते हैं, उसका विश्वास मर जाता है। इस तरह आदमी मरने से पहले भी मर जाता है और फिर मरा हुआ आदमी दोबारा थोड़े न मरता है।
पिता और पुत्र के कर्तव्य
अगर आप पिता हैं तो आपका अपने बेटे के प्रति बस एक ही फर्ज है कि आप अपने बेटे को इतना योग्य बना दें कि वह संत-मुनि और विद्वानों की सभा में सबसे आगे की पंक्ति में बैठने का हकदार बने और अगर आप बेटे हैं तो आपका अपने पिता के प्रति बस यही एक कर्तव्य है कि आप ऐसा आदर्शमय जीवन जिएं, जिसे देखकर दुनिया तुम्हारे पिता से पूछे कि किस तपस्या और पुण्य के फल से तुम्हें ऐसा होनहार बेटा मिला है।
क्रोध आग है, शांति जल
अगर जिंदगी को स्वर्ग बनाने की तमन्ना है तो पति और पत्नी, सास और बहू, बाप और बेटे को आपस में यह समझौता करना होगा कि अगर एक आग बने तो दूसरा पानी बन जाएगा। अपने घरों में थोड़े से पानी की व्यवस्था करके रखिए, पता नहीं कब किसके दिल में क्रोध की आग भड़क उठे। क्रोध आग है। अपने घरों में सहनशीलता और शांति का जल तैयार रखिए। पता नहीं, कब तुम्हारा घर क्रोध की लपटों में घिर जाए।
ध्यान रखो: पति कभी क्रोध में आग बने तो पत्नी पानी बन जाए और पत्नी कभी अंगार बने तो पति जलधार हो जाए।
—जैन मुनि श्री तरुण सागर जी