मंदिर जाएं तो देवी-देवताओं की मूर्तियों में चेतना अवश्य जागृत करें

Edited By ,Updated: 03 Feb, 2015 08:42 AM

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सनातन धर्म से जुड़े प्रत्येक देवालयों तथा मंदिरों के बाहर आप सभी ने बड़े-बड़े घंटे या घंटियां लटकी तो अवश्य देखी होंगी जिन्हें मंदिर में प्रवेश करने से पहले श्रद्धालुजन भक्तिमय भाव के साथ बजाते हैं। लेकिन

सनातन धर्म से जुड़े प्रत्येक देवालयों तथा मंदिरों के बाहर आप सभी ने बड़े-बड़े घंटे या घंटियां लटकी तो अवश्य देखी होंगी जिन्हें मंदिर में प्रवेश करने से पहले श्रद्धालुजन भक्तिमय भाव के साथ बजाते हैं। लेकिन क्या कभी आपने यह विचार किया है कि इन घंटो को देवालयों के बाहर लगाए जाने के पीछे क्या कारण है या फिर धार्मिक दृष्टिकोण से इनका औचित्य क्या है?

वास्तविकता में पौराणिक काल से ही शिवालयों, मंदिरों और देवस्थानों के बाहर इन घंटो को लगाया जाने का प्रारंभ हो गया था। गर्भगृह में देव दर्शन से पूर्व घंटों के नाद के पीछे यह वैज्ञानिक तर्क है कि जिन स्थानों पर घंटो की आवाज नियमित तौर पर आती रहती है वहां का वातावरण हमेशा सुखद और पवित्र बना रहता है और ऋणात्मकता, आसुरी शक्तियां और अनिष्टकारी ताकते पूरी तरह निष्क्रिय रहती हैं। इसी कारणवश प्रातः मध्यान और संध्या के समय जब भी मंदिरों में आरती होती है तो एक लय और विशेष धुन के साथ घंटे घडियाल और घंटियां बजाई जाती हैं जिससे वहां मौजूद व्यक्तियों को आध्यात्मिक शांति और ईश्वरीय उपस्थिति की अनुभूति होती है।

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार घंटे घडियाल और घंटियां बजाने से देवालयों और मंदिरों में स्थापित देवी-देवताओं की मूर्तियों में चेतना जागृत होती है जिसके बाद उनकी पूजा-अर्चना अधिक प्रभावी और फलदायी बन जाती है। शास्त्रों के अनुसार मंदिर में घंटा नाद से मनुष्यों के कई जन्मों के पाप तक नष्ट हो जाते हैं। आदिकाल में जब सृष्टि का प्रारंभ हुआ तब जो नाद अर्थात ध्वनि गुंजन हुआ था वही आवाज घंटी बजाने पर भी आती है। उल्लेखनीय है कि यही नाद ॐकार के उच्चारण से भी जागृत होता है। देवालयों और मंदिरों के गर्भगृह के बाहर लगी घंटी या घंटे को काल का प्रतीक भी माना गया है। कई पौराणिक शास्त्रों में यह भी वर्णित है कि “जब महाप्रलय आएगी उस समय भी ऐसा ही नाद गूंजेगा”। 

देवालयों और मंदिरों के गर्भगृह के बाहर में घंटा यां घंटी लगाए जाने के पीछे ना सिर्फ धार्मिक मत है अपितु वैज्ञानिक कारण भी इनकी आवाज को आधार देते हैं। वैज्ञानिक तर्क अनुसार जब घंटी बजाई जाती है तो वातावरण में कंपन उत्तपन होता है, घंटो और घंटियों के नाद की तरंग-दैर्ध्य (वेव लेंथ) वायुमंडल में विसर्जित ही जाती है नाद की तरंग-दैर्ध्य वायुमंडल के कारण काफी दूर तक जाता है। इस कंपन का फायदा यह है कि इसके क्षेत्र में आने वाले सभी जीवाणु, विषाणु और रोगाणु आदि नष्ट हो जाते हैं, जिससे आसपास का वातावरण पवित्र और शुद्ध हो जाता है। इसीलिए अगर आप धर्मस्थल जाते समय घंटा नाद को महत्वपूर्ण नहीं मानते हैं तो अगली बार धर्मस्थल में प्रवेश करने से पूर्व घंटा नाद करना न भूलें।

आचार्य कमल नंदलाल

ईमेल: kamal.nandlal@gmail.com 

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