नवरात्रों के विषय में यह भी जानिए

Edited By ,Updated: 25 Mar, 2015 09:04 AM

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दुर्गा पूजा के विषय में अथर्वेद में वर्णन मिलता है कि माता दुर्गा का पूजन करना इसलिए और अधिक महत्त्वपूर्ण है क्योंकि पृथ्वी से लेकर समस्त देवी-देवताओं का अधिष्ठान भगवती दुर्गा में है। भगवती दुर्गा का पूजन कर लेने से सभी देवी-देवताओं के पूजन का फल...

दुर्गा पूजा के विषय में अथर्वेद में वर्णन मिलता है कि माता दुर्गा का पूजन करना  इसलिए और अधिक महत्त्वपूर्ण है क्योंकि पृथ्वी से लेकर समस्त देवी-देवताओं का अधिष्ठान भगवती दुर्गा में है। भगवती दुर्गा का पूजन कर लेने से सभी देवी-देवताओं के पूजन का फल मिलता है।

दुर्गा सप्तशती के दूसरे अध्याय में भी वर्णन है कि सभी देवताओं के तेज से ही भगवती दुर्गा प्रकट हुई हैं। उनके ही नव स्वरूप माने गए हैं शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चन्द्रघंटा, कूष्मांडा, स्कन्धमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी, सिद्धिदात्री नामों से भगवती नव दुर्गा प्रसिद्ध हैं।
 
नवरात्रों में प्रत्येक दिन के क्रम से इन्हीं नव स्वरूपों की पूजा होती है यद्यपि दो तरह की परम्पराएं प्रचलित हैं कुछ लोग नव स्वरूपों की पूजा नवरात्र के नव दिनों में क्रमशः  शैल पुत्री आदि 8 देवियों की क्रम से करते हैं तो कुछ लोग प्रतिदिन सभी स्वरूपों की पूजा करते हैं। 
 
पहले के समय में वर्ष का प्रारंभ शरद ऋतु से माना जाता था इसलिए भगवती दुर्गा की पूजा वर्ष के प्रारंभ अर्थात आश्विन शुक्ल प्रतिपदा से अष्टमी पर्यंत नवरात्रियों में की जाती थी चूंकि ये नवरात्र शरद ऋतु में होते हैं इसलिए इसे शारदीय नवरात्र कहा जाने लगा। 
 
इसके बाद जब वर्ष का प्रारंभ चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से माना जाने लगा तो भगवती दुर्गा की पूजा इसी प्रतिपदा से अष्टमी पर्यंत नवरात्रियों में की जाने लगी यह नवरात्र बसंत ऋतु में होने के कारण इसे बासंती नवरात्र कहा जाने लगा।
 
आचार्य डॉ. शेष नारायण वाजपेयी
vajpayeesn@gmail.com

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