संसार का एकमात्र वृक्ष जिस पर बीज नहीं लगते

Edited By ,Updated: 05 Apr, 2015 07:11 AM

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हरिवंश पुराण के अनुसार पारिजात के वृक्ष को कल्पवृक्ष कहा गया है तथा इसकी उत्तपत्ति समुन्द्र मंथन से हुई थी। इस वृक्ष को देवराज इंद्र स्वर्गलोक ले गए थे इसे छूने का अधिकार मात्र उर्वशी नामक अप्सरा को प्राप्त था जिससे उर्वशी की सारी थकान दूर हो जाती...

हरिवंश पुराण के अनुसार पारिजात के वृक्ष को कल्पवृक्ष कहा गया है तथा इसकी उत्तपत्ति समुन्द्र मंथन से हुई थी। इस वृक्ष को देवराज इंद्र स्वर्गलोक ले गए थे इसे छूने का अधिकार मात्र उर्वशी नामक अप्सरा को प्राप्त था जिससे उर्वशी की सारी थकान दूर हो जाती थी। परिजात एकमात्र ऐसा वृक्ष है जिस पर बीज नहीं लगते व इसकी कलम बोने पर दूसरा वृक्ष नहीं लगता। इस अद्भुत वृक्ष पर पुष्प जरूर खिलते हैं लेकिन वे भी मात्र रात्री में तथा प्रातः होने पर सभी फूल मुरझा जाते हैं। इन फूलों को मूलतः लक्ष्मी पूजन हेतु उपयोग किया जाता है परंतु मात्र उन्हीं फूलों को उपयोग किया जाता है जो स्वयं टूटकर गिरे हों। अतः शास्त्रों में पारिजात के फूल तोड़ना वर्जित कहा गया है। 

हरिवंश पुराण के अनुसार एक समय देवऋषि नारद श्रीकृष्ण से मिलने पृथ्वीलोक आए। उस समय नारद के हाथों में परिजात के फूल थे तथा नारद ने वे फूल श्रीकृष्ण को भेंट किए। श्री कृष्ण ने वे फूल साथ में बैठी अपनी पत्नी रुक्मणी को दे दिए परंतु जब ये बात श्रीकृष्ण की एक और पत्नी सत्यभामा को ज्ञात हुई तो वो क्रोधित हो उठी तथा श्री कृष्ण से अपनी वाटिका हेतु परिजात वृक्ष की मांग की। श्रीकृष्ण के समझाने पर भी सत्यभामा शांत नहीं हुईं तथा अंत में सत्यभामा हठ के सामने झुकते हुए श्रीकृष्ण ने अपने एक दूत को स्वर्गलोक में परिजात वृक्ष को लाने के लिए भेजा पर उनकी यह मांग पर इंद्र ने इंकार कर दिया और वृक्ष नहीं दिया। जब इस बात का संदेश श्रीकृष्ण तक पहुंचा तो वे रोष से भर गए और इंद्र पर आक्रमण कर दिया।

युद्ध में श्रीकृष्ण को विजयश्री प्राप्त हुई तथा श्रीकृष्ण इंद्र को पराजित कर परिजात वृक्ष ले आए। इंद्र ने क्रोध में आकर परिजात के वृक्ष पर कभी भी फल ना आने का श्राप दिया इसी कारण परिजात पर कभी भी फल नहीं उगते। उनके वचनों के अनुसार श्रीकृष्ण ने पारिजात को लाकर सत्यभामा की वाटिका में लगवा दिया परंतु सत्यभामा को सबक सिखाते हुए कुछ ऐसा किया की रात्री में पारिजात पर फूल तो उगते थे परंतु वे उनकी प्रिय पत्नी रुक्मणी ( जो लक्ष्मी जी का ही अवतार थी) की वाटिका में ही गिरते थे। अतः आज भी जब इस वृक्ष के पुष्प झड़ते भी हैं तो पेड़ से काफी दूर जाकर गिरते हैं।

पुराण प्रेम सुख सागर के अनुसार अज्ञातवास भोग रहे पाण्डव माता कुंती के साथ उत्तरप्रदेश के बाराबंकी जिला के गांव किंटूर में आए थे। जहां उन्होंने एक शिव मंदिर की स्थापना की ताकि उनकी माता अपनी इच्छानुसार पूजा अर्चना कर सकें। श्रीकृष्ण के आदेश पर कुंति हेतु पाण्डव सत्यभामा की वाटिका से परिजात वृक्ष को ले आए थे क्योंकि इस वृक्ष के पुष्पों से माता कुंति शिव पूजन करती थीं। इस तरह से स्वर्गलोक से आया वृक्ष किंटूर गांव का हिस्सा बन गया। 

शास्त्रानुसार स्वर्गलोक या पृथ्वीलोक में पारिजात वृक्ष को सर्वोत्तम स्थान प्राप्त है। आयुर्वेद में परिजात के वृक्ष को हारसिंगार कहा जाता है तथा हारसिंगार अर्थात पारिजात के फूलों का लक्ष्मी व शिवपूजन में अत्यधिक महत्व है।

आचार्य कमल नंदलाल

ईमेल kamal.nandlal@gmail.com

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