जन्म से लेकर मृत्यु तक का सफर, क्या खोया क्या पाया?

Edited By ,Updated: 06 Apr, 2015 10:57 AM

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जिंदगी लाई मुझे मैं जिंदगी को ले चला, जिंदगी के देने वाला देखता ही रह गया। रुक सका न मैं जमाना देखता ही रह गया, यह जहान मेरा तमाशा देखता ही रह गया बात जो अच्छी लगी, करके उसको चल दिए, कोई बातों का खुलासा देखता ही रह गया बढ़ रही नफरत...

जिंदगी लाई मुझे मैं जिंदगी को ले चला,

जिंदगी के देने वाला देखता ही रह गया।

रुक सका न मैं जमाना देखता ही रह गया,

यह जहान मेरा तमाशा देखता ही रह गया

बात जो अच्छी लगी, करके उसको चल दिए,

कोई बातों का खुलासा देखता ही रह गया

बढ़ रही नफरत की आंधी, देख कर संसार में,

प्रेम का लेकर खजाना, बांटने को चल दिया

शब्द में व्यक्त भावों की व्याख्या करते हुए महाराज कमलबीर जी ने फरमाया कि हमारे जीवन की पहचान इसी बात से होती है कि हम अपने जीवन को किस प्रकार जीते हैं। जीवन तो सभी को मिला है परन्तु इसे जीने का ढंग सभी के पास नहीं है। 

यही कारण है कि अधिकतर लोग अपने जीवन में सफल नहीं हो पाते। हम इस जीवन में जो कुछ भी करते हैं वह साथ के साथ रिकार्ड होता चला जाता है और फिर यही बातें वापस हमारे जीवन में प्रकट होती हैं अर्थात हम जो कुछ करते हैं अथवा किसी को देते हैं वही हमें वापस हमारे जीवन में प्रकट होती हैं। अर्थात् हम जो कुछ करते हैं अथवा किसी को देते हैं वही हमें वापस मिलता है। जन्म से लेकर मृत्यु तक का जो समय है, इसे जीवन कहा जाता है। 

इस समय के दौरान हम जो भी कर्म करते हैं अथवा हमारा जो स्वभाव बन जाता है, वही हमारे साथ आगे जाता है। आमतौर पर लोग नफरत, गुस्सा, वैर-विरोध, ईर्ष्या, घृणा जैसे विकारों को अपने अंदर समेट कर चलते हैं। 

 उनके जीवन में प्रकट होने वाली स्थितियां भी इन्हीं विकारों से प्रभावित होती हैं और उन्हें दुख प्राप्त होता है। फिर वे शिकायत करते हैं कि उनके साथ ऐसा क्यों हुआ। यह सब मनुष्य की अज्ञानता के कारण ही है। अगर हमारा होश जाग जाए तो फिर हम किसी भी विकार को अपने जीवन में आने ही नहीं देंगे। होश जागने पर एक-एक करके बुरे विचार और कर्म छूटने शुरू हो जाते हैं और हमारे जीवन में सद्विचार और सद्कर्म आ जाते हैं। हमारी नकारात्मक सोच सकारात्मक में बदल जाती है और जीवन का रूपांतरण होना शुरू हो जाता है। परन्तु ऐसा तभी होता है अगर हमें जीवन की समझ देने वाला कोई महापुरुष मिल जाता है। 

महापुरुष ही हमें जीवन की पहचान करवाते हैं और अपनी मंजिल की ओर आगे बढऩे का रास्ता दिखाते हैं। अज्ञानता में लोग परमात्मा के नाम पर पता नहीं क्या कुछ करते हैं। ध्यान से देखा जाए तो यह सब व्यर्थ ही होता है। 

प्रभु का सिमरन करने का अर्थ यह नहीं कि हम किसी एक शब्द को लेकर उसको रटना शुरू कर दें बल्कि हमने हर पल इस बात को याद रखना है कि हम कौन हैं। इस बात को समझ कर और स्वीकार करके हमें किसी भी शब्द का उच्चारण करने की आवश्यकता नहीं रहती बल्कि हम अपने निज रूप को जानकर मौन हो जाते हैं और अथाह खामोशी में उतर जाते हैं। 

खामोशी में ही परमात्मा है। हम अपने अस्तित्व को और अपनी वास्तविक पहचान को भूले हुए हैं। महापुरुष समय-समय पर इस संसार में आकर हमें हमारी वास्तविक पहचान बताते हैं। हमने इसी बात को याद रखना है कि हम कौन हैं और इस संसार में क्यों आए हैं।  हमारे देश में लोग परमात्मा के नाम पर कर्म-कांड करते हैं जबकि जापान में लोग होश जगाने पर जोर देते हैं। हमारे देश  में जब कोई मरने वाला होता है तो उसे कहा जाता है कि प्रभु का नाम ले। उसके मुंह में गंगाजल डाला जाता है। 

जिस आदमी ने सारा जीवन परमात्मा को याद न किया हो, कभी उसकी ओर ध्यान न किया हो, कभी अपने जीवन में कोई अच्छा काम न किया हो, अंतिम समय में वह अपने मुंह से प्रभु का नाम ले भी लेगा अथवा उसके मुंह में गंगाजल डाल दिया जाएगा तो इससे न तो उसके कर्म कटेंगे और न ही उसे परमात्मा का अहसास होगा।

 —महाराज कमलबीर जी

संकलन : श्री रघुबीर गुप्ता, लुधियाना

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