ऐतिहासिक कहानी से जानें, खोए संस्कारों को वापिस पाने का मार्ग

Edited By ,Updated: 07 Apr, 2015 12:03 PM

article

जो जैसा अन्न खाता है, उसका मन भी वैसा हो जाता है महाभारत का युद्ध चल रहा था। भीष्म पितामह अर्जुन के बाणों से घायल हो बाणों से ही बनी हुई एक शय्या पर पड़े हुए थे। कौरव और पांडव दल के लोग प्रतिदिन उनसे मिलना जाया करते थे।

 जो जैसा अन्न खाता है, उसका मन भी वैसा हो जाता है

महाभारत का युद्ध चल रहा था।  भीष्म पितामह अर्जुन के बाणों से घायल हो बाणों से ही बनी हुई एक शय्या पर पड़े हुए थे। कौरव और पांडव दल के लोग प्रतिदिन उनसे मिलना जाया करते थे।

एक दिन का प्रसंग है कि पांचों भाई और द्रौपदी चारों तरफ बैठे थे और पितामह उन्हें उपदेश दे रहे थे। सभी श्रद्धापूर्वक उनके उपदेशों को सुन रहे थे कि अचानक द्रौपदी खिलखिलाकर हंस पड़ी। पितामह इस हरकत से बहुत आहत हो गए और उपदेश देना बंद कर दिया। पांचों पांडव भी द्रौपदी के इस व्यवहार से आश्चर्यचकित थे। सभी बिल्कुल शांत हो गए। कुछ क्षणोपरांत पितामह बोले, ‘‘पुत्री, तुम एक सम्भ्रांत कुल की बहू हो, क्या मैं तुम्हारी इस हंसी का कारण जान सकता हूं?’’

द्रौपदी बोली, ‘‘पितामह, आज आप हमें अन्याय के विरुद्ध लडऩे का उपदेश दे रहे हैं लेकिन जब भरी सभा में मुझे निर्वस्त्र करने की कुचेष्टा की जा रही थी तब कहां चला गया था आपका यह उपदेश, आखिर तब आपने भी मौन क्यों धारण कर लिया था?

यह सुन पितामह की आंखों से आंसू आ गए। कातर स्वर में उन्होंने कहा, ‘‘पुत्री, तुम तो जानती हो कि मैं उस समय दुर्योधन का अन्न खा रहा था। वह अन्न प्रजा को दुखी कर एकत्र किया गया था, ऐसे अन्न को भोगने से मेरे संस्कार भी क्षीण पड़ गए थे, फलत: उस समय मेरी वाणी अवरुद्ध हो गई थी और अब जबकि उस अन्न से बना लहू बह चुका है, मेरे स्वाभाविक संस्कार वापस आ गए हैं और स्वत: ही मेरे मुख से उपदेश निकल रहे हैं। बेटी, जो जैसा अन्न खाता है उसका मन भी वैसा ही हो जाता है।’’

Related Story

Trending Topics

IPL
Chennai Super Kings

176/4

18.4

Royal Challengers Bangalore

173/6

20.0

Chennai Super Kings win by 6 wickets

RR 9.57
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!