मछली को नथनी पहनाने से होती थी इच्छाएं पूर्ण

Edited By ,Updated: 10 Apr, 2015 01:26 PM

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भगवान विष्णु ने प्रथम अवतार मत्स्य (मछली) के रूप में लिया। जोगेंद्रनगर-सरकाघाट-घुमारवीं सड़क पर करीब आठ किलोमीटर की दूरी पर मत्स्य अवतार मच्छयाल का तीर्थ स्थित है। बैशाखी पर्व पर यहां तीन दिनों तक मेले का आयोजन होता है। दूर दराज से लोग अपनी मन्नतों...

भगवान विष्णु ने प्रथम अवतार मत्स्य (मछली) के रूप में लिया। जोगेंद्रनगर-सरकाघाट-घुमारवीं सड़क पर करीब आठ किलोमीटर की दूरी पर मत्स्य अवतार मच्छयाल का तीर्थ स्थित है। बैशाखी पर्व पर यहां तीन दिनों तक मेले का आयोजन होता है। दूर दराज से लोग अपनी मन्नतों की पूर्ति के लिए आते हैं। 

आज से करीब 300 वर्ष पूर्व स्थापित शिवलिंग का पूजन करने के उपरांत ही लोग विवाह अथवा अन्य प्रोग्राम के लिए बर्तन आदि प्राप्त करते थे। जिस घर में शुभ कार्य संपन्न होने वाला होता था उस घर के लोग शिवलिंग के सामने अपनी इच्छा रखकर शादी में उपयोग होने वाले बर्तनों की विनती करते थे। उनका मनोरथ पूर्ण हो जाता था।
 
काफी लम्बे समय तक इस परम्परा का निर्वाह होता रहा। किसी परिवार के मन में कपट की भावना आने से अमानत में खयानत कर दी गई। माना जाता है कि तभी से मच्छयाल में बर्तन आदि प्राप्त करने की प्रथा समाप्त हो गई।
 
इस घटना के बाद भी श्रद्धालुओं की आस्था में कोई कमी नहीं आई। आज भी मच्छयाल में बने तालाब में भक्त स्नान करने के उपरांत अपनी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं।
 
कुछ समय पूर्व तक मच्छयाल में बहुत बड़े आकार की मछलियां हुआ करती थी लेकिन अब समय के साथ साथ इनकी संख्या में भी कमी होती जा रही है। माना जाता है की यहां आने वाले श्रद्धालु पूजनीय मछली को नथनी भी पहनाते थे। शनिवार के रोज लोग खास तौर पर मछलियों को आटा, मीठा आदि खिलाने आते हैं।नवग्रहों आदि से संबंधित उपाय भी मच्छयाल में संपन्न किए जाते हैं।

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