भक्तों को अपार शक्तियों का भंडार बना देते हैं भगवान शिव

Edited By ,Updated: 27 Apr, 2015 10:54 AM

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शिव के नृत्य करते रूप को नटराज कहते हैं। शिव का यह नृत्य प्रलय का प्रतीक माना जाता है। जब अधर्म अपने चरम पर होता है और कोई उपाय नहीं बचता है तब शिव को तांडव नृत्य के लिए विवश होना पड़ता है।

शिव के नृत्य करते रूप को नटराज कहते हैं। शिव का यह नृत्य प्रलय का प्रतीक माना जाता है। जब अधर्म अपने चरम पर होता है और कोई उपाय नहीं बचता है तब शिव को तांडव नृत्य के लिए विवश होना पड़ता है। विनाश के इस रूप में ही सृजन का भाव भी छिपा रहता है। रामायण एवं महाभारत के युद्ध के बिना कहां नई व्यवस्था आरंभ हो सकती थी? शिव एक सौ एक मुद्राओं में नृत्य करते हैं। हर मुद्रा में शिव के चेहरे पर विभिन्न भाव आते हैं जिनका कला में भी सुंदर प्रयोग किया गया है।

शिव त्रिनेत्र हैं। शरीर पर चिता की भस्म लगाते हैं। गले में मुंड माला पहनते हैं। नाथ परम्परा की कथाओं के अनुसार शिव के मुंडमाला के सभी मुंड पार्वती के पिछले जन्मों के मुंड हैं। आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने इस कथा का उल्लेख अपनी प्रसिद्ध पुस्तक ‘नाथ संप्रदाय’ में किया है। इस कथा के आलोक में देखें तो पाएंगे कि शिव के महादेवत्व वाले जीवन में विरह का महा घना अंधकार भरा है। शरीर या कंठ में सर्प की माला पहनते हैं। यदि शिव महाकाल हैं तो यह सर्पकाल के रूप में उनके शरीर की शोभा बनता है।

मनुष्य जब पूरी तरह पराजित हो जाता है तब केवल एकमात्र देव का ही आश्रय (सहारा) लेता है। ऋषियों-मुनियों द्वारा बताए गए यज्ञ, दान, तप, योग, स्तवन, नामजप, संकीर्तन आदि को ही जीवन का आधार मानकर उनके अनुष्ठान में अग्रसर होता है।  कलियुग में कीर्तन, नामजप, स्रोत पाठ आदि का विशेष महत्व है। इनमें सभी भक्त हृदयों को समान अधिकार है। इनमें भगवान शिव के भक्त विशेष कृपा के पात्र हैं। भगवान शिव प्रसन्न होकर अपने भक्तों को शक्तियों का भंडार बना देते हैं। अज्ञात अथवा ज्ञात अपराधों की समाप्ति केवल भगवान शिव की भक्ति से ही संभव है।

—राजीव मिश्र

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