इस स्थल पर रावण को प्राप्त हुए थे भगवान शिव से दस सिर

Edited By ,Updated: 07 May, 2015 04:08 PM

article

जिला कांगड़ा के बैजनाथ में स्थित प्राचीन शिव मंदिर उत्तरी भारत का आदिकाल से एक तीर्थ स्थल माना जाता है। इस मंदिर में स्थित अर्धनारीश्वर शिवलिंग देश के विख्यात एवं प्राचीन ज्योती लिंग में से एक है। जिसका इतिहास लंकाधिपति रावण से जुड़ा है

जिला कांगड़ा के बैजनाथ में स्थित प्राचीन शिव मंदिर उत्तरी भारत का आदिकाल से एक तीर्थ स्थल माना जाता है। इस मंदिर में स्थित अर्धनारीश्वर शिवलिंग देश के विख्यात एवं प्राचीन ज्योती लिंग में से एक है। जिसका इतिहास लंकाधिपति रावण से जुड़ा है यूं तो वर्ष भर प्रदेश के देश-विदेश से हजारों की संख्या में पर्यटक इस प्राचीन मंदिर में विद्यमान प्राचीन शिवलिंग के दर्शन के साथ-साथ इस क्षेत्र की प्राकृतिक सौदर्य की छटा का भरपूर आनंद लेते है परन्तु शिवरात्रि एवं श्रवण मास में यह नगरी बम-बम भोले के उदघोष से शिवमयी बन जाती है , प्रदेश सरकार द्वारा इस मंदिर में कालातंर से मनाये जाने वाले शिवरात्री मेले के महत्व को देखते हुए इसे राज्य स्तरीय मेले का दर्जा दिया गया है।

हिन्दू धार्मिक ग्रन्थ शिवपुराण में शिवरात्री का बहुत महत्व है जिसे हर वर्ष फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुदर्शी को शिवरात्री पर्व पूरे देश में श्रद्वा एवं उल्लास के साथ मनाया जाता है। शिवरात्री के पावन पर्व पर आशुतोष भगवान शिव की अराधना  मनुष्य को कष्टों से छुटकारा दिलाने वाली तथा मुक्तिदायनी मानी जाती है। ऐसी लोगों की मान्यता प्रचलित है शिवरात्री को भगवान शिव एवं पार्वती के विवाहोत्सव के रूप में भी मनाया जाता है, जबकि लिंगपुराण के अनुसार शिवरात्री को भगवान शिव का अभिर्भाव लिंग में हुआ था विशेषकर महिलाओं द्वारा शिवरात्री व्रत को पति की दीघायु के लिए शिवलिंग की पूजा की जाती है। 

गौरतलब हैं कि यह ऐतिहासिक शिव मंदिर प्राचीन शिल्प एवं वास्तुकला का अनूठा व बेजोड़ नमूना है जिसके भीतर भगवान शिव का शिवलिंग अर्धनारीश्वर के रूप में विराजमान है तथा मंदिर के द्वार पर कलात्मक रूप से बनी नंदी बैल की मृर्ति शिल्प कला का एक विशेष नमूना है श्रद्वालु शिंवलिंग को पंचामृत से स्नान करवा कर उस पर बिल पत्र, फूल, भांग, धतूरा इत्यादि अर्पित कर शिव भगवान को प्रसन्न करके अपने कष्टों एवं पापों का निवारण कर पुण्य कमाते है, जबकि श्रवण के दौरान पड़ने वाले हर सोमवार को मंदिर में मेला लगता है।

एक जनश्रुति के अनुसार द्वापर युग में पांडवों द्वारा अज्ञात वास के दौरान इस भव्य मंदिर का निर्माण करवाया गया था, परन्तु वह पूर्ण नहीें हो पाया था स्थानीय लोगों के अनूुसार इस मंदिर का शेष निर्माण कार्य आहूक एवं मनूक नाम के दो व्यापारियों ने पूर्ण किया था और तब से लेकर अब तक यह स्थान शिवधाम के नाम से उत्तरी भारत में विख्यात है। 

उन्होंने बताया कि राम रावण युद्व के दौरान रावण ने शिव को प्रसन्न करने के लिए कैलाश पर्वत पर तपस्या की थी और भगवान शिव को लंका चलने का वर मांगा ताकि युद्व में विजय प्राप्त की जा सके। शिव भगवान ने प्रसन्न होकर रावण के साथ लंका एक पिंडी के रूप चलनें का वचन दिया और साथ में यह शर्त रखी कि वह इस पिंडी को कहीं जमीन पर रखकर सीधा इसे लंका पहुंचाएं।

रावण शिव की इस अलौकिक पिंडी को लेकर लंका की ओर रवाना हुए रास्ते में कीेरग्राम ( बैजनाथ) नामक स्थान पर रावण को लधुशंका लगी उन्होंने वहां खड़े व्यक्ति को थोडी देर के लिए पिंडी सौंप दी। लघुशंका से निवृत होकर रावण ने देखा कि जिस व्यक्ति के हाथ में वह पिंडी दी थी वह लुप्त हो चुके हैं ओर पिंडी जमीन में स्थापित हो चुकी थी रावण ने स्थापित पिंडी को उठाने का काफी प्रयास किया परन्तु उठा नहीं पाए। उन्होंने इस स्थल पर घोर तपस्या की और अपने दस सिर की आहुतियां हवनकुंड में डाली तपस्या से प्रसन्न होकर रूद्र महादेव ने रावण के सभी सिर फिर से स्थापित कर दिए।

Related Story

India

397/4

50.0

New Zealand

327/10

48.5

India win by 70 runs

RR 7.94
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!