मंदोदरी को देख हनुमान जी को हुआ भ्रम कि यही सीता जी हैं लेकिन...

Edited By ,Updated: 25 May, 2015 01:40 PM

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लंकिनी के निकट से चल कर वीरवर हनुमान जी सीता जी की खोज करने लगे। उन्होंने रावण के महल का कोना-कोना छान डाला, किन्तु कहीं भी उन्हें सीता जी के दर्शन नहीं हुए। सीता जी को न देख पाने के कारण वह बहुत ही दुखी और चिंतित हो रहे थे।

लंकिनी के निकट से चल कर वीरवर हनुमान जी सीता जी की खोज करने लगे। उन्होंने रावण के महल का कोना-कोना छान डाला, किन्तु कहीं भी उन्हें सीता जी के दर्शन नहीं हुए। सीता जी को न देख पाने के कारण वह बहुत ही दुखी और चिंतित हो रहे थे। रावण के महल में मंदोदरी को देख कर उन्हें कुछ क्षणों के लिए ऐसा भ्रम हुआ कि यही सीता जी हैं लेकिन तुरंत उन्होंने समझ लिया कि यह सीता जी नहीं हो सकतीं। यह तो अत्यंत प्रसन्न दिखलाई दे रही हैं। माता सीता जी तो जहां भी होंगी भगवान श्रीरामचंद्र जी से दूर होने के कारण बहुत ही दुखी होंगी। वह इस समय सुखी और प्रसन्न कैसे रह सकती हैं? नहीं, यह माता सीता जी नहीं हो सकतीं। ऐसा सोच कर वह पुन: आगे बढ़ गए।

इस प्रकार सीता जी की खोज करते-करते सुबह हो गई। उसी समय विभीषण अपनी कुटिया में जागा। जागते ही उसने राम नाम का स्मरण किया। वह भगवान श्रीरामचंद्र जी का परम भक्त था। लंका में राम नाम सुनकर हनुमान जी को बड़ा आश्चर्य हुआ। उन्होंने सोचा, राक्षसों की इस नगरी में ऐसा कौन भला आदमी है जो भगवान राम का नाम जप रहा है।

मुझे इससे मिलना चाहिए। इससे किसी प्रकार की भी हानि नहीं हो सकती। ऐसा सोच कर हनुमान जी ने विभीषण से भेंट की। वह हनुमान जी से मिलकर बहुत प्रसन्न हुआ और बारम्बार अपने भाग्य की सराहना करने लगा। उसने हनुमान जी को बताया कि रावण ने सीता जी को अशोक वाटिका में छुपा रखा है। हनुमान जी तुरंत अशोक वाटिका की ओर चल पड़े।

अशोक वाटिका में पहुंचकर अशोक के एक वृक्ष पर पत्तों के बीच छिप कर वह बैठ गए। उन्होंने देखा कि दुखी माता सीता जी का सारा शरीर सूखकर कांटा हो गया है। सिर के बाल जटाओं की तरह गुंथकर एक ही चोटी बन गए हैं। वह केवल राम-राम जपते हुए जोर-जोर से सांस लेती हुई आंखों से आंसू बहा रही हैं। अब हनुमान जी से और न देखा गया। उन्होंने धीरे से भगवान श्रीरामचंद्र जी द्वारा पहचान के लिए दी गई मुद्रिका (अंगूठी) सीता जी की गोद में गिरा दी। उसी के थोड़ी देर पहले सीता जी ने अशोक-वृक्ष से प्रार्थना की थी कि हे वृक्ष! तुम्हारा नाम अशोक है। तुम सबका शोक दूर करते हो। कहीं से लाकर  मेरे ऊपर एक अंगार गिरा दो। इस शरीर को भस्म कर मैं तत्काल शोक से छुटकारा पा जाऊं।

अत: हनुमान जी द्वारा गिराई गई मुद्रिका को उन्होंने अशोक द्वारा दिया गया अंगारा ही समझा। लेकिन जब उन्होंने देखा कि यह तो राम-नाम लिखी हुई वही मुद्रिका है जिसे प्रभु श्रीरामचंद्र जी धारण किया करते थे, तब उनके आश्चर्य का ठिकाना न रहा।

वह सोचने लगीं-श्री रघुनाथ जी तो सर्वथा अजेय हैं उन्हें देव, असुर, दानव, मनुष्य कोई भी जीत नहीं सकता। माया के द्वारा ऐसी अंगूठी का निर्माण बिल्कुल असंभव है। इसी समय सीता जी को सांत्वना देने के लिए हनुमान जी मधुर वाणी में श्रीरामचंद्र जी के गुणों का वर्णन करने लगे। आदि से अंत तक रघुनाथ जी की सम्पूर्ण कथा सुनाई। उनकी मधुर वाणी से श्रीराम कथा की अमृतधारा निकल कर सीता जी के कानों में रस घोलने लगी।

कथा के सुंदर प्रवाह से उनका सम्पूर्ण शोक और दुख क्षणमात्र में समाप्त हो गया। सीता जी बोलीं कि जिसके द्वारा सुनाई कथा ने मेरे सारे शोक हर लिए हे भाई! वह प्रकट क्यों नहीं होता?

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