श्री फूलचंद जी महाराज: 17 जून पुण्य तिथि पर विशेष

Edited By ,Updated: 16 Jun, 2015 08:47 AM

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अध्यात्म साधना की प्रतिमूर्त थे श्रमण श्री फूलचंद जी महाराज संसार के अनादि प्रवाह में मानव ने धर्म, दर्शन और अध्यात्म की अनेक मंजिलें पार की हैं।

अध्यात्म साधना की प्रतिमूर्त थे श्रमण श्री फूलचंद जी महाराज संसार के अनादि प्रवाह में मानव ने धर्म, दर्शन और अध्यात्म की अनेक मंजिलें पार की हैं। इस अंतराल में न जाने कितनी सभ्यताएं, संस्कृतियां तथा समुदाय काल कवलित हो चुके होंगे परन्तु महापुरुषों के अनुभूत जन्य सत्य और देशनाएं कालजयी होती है। ऐसे महापुरुषों की कोटि में श्रमण श्री फूल चंद जी महाराज का नाम श्रद्धापूर्वक लिया जाता है।
 
आपका जन्म 1912 ई. में हिमाचल प्रदेश के रामपुर बुशहर (शिंगड़ा) में हुआ। पूर्व जन्म के संस्कारों और पुण्योदय से आपने आचार्य सम्राट पूज्य श्री आत्माराम जी महाराज के प्रधान शिष्य श्री खजान चंद जी महाराज के चरणों में भद्दलवड़ में 1930 ई. में मुनि दीक्षा अंगीकार की। आप प्रकृति से सरल, सहनशील तथा मितभाषी थे। आपने अपने गुरु के चरणों में रह कर आगम साहित्य और अध्यात्म साधना की। गर्मी और सर्दी की परवाह न करते हुए आपने आभ्यन्तर तपस्या की। यदि सांसारिक दुखों से संतप्त कोई भी व्यक्ति आपके श्री चरणों में आता तो तृप्त होकर जाता था। आप का हृदय दूसरों के दुखों को देखकर द्रवित हो जाता था।
 
अध्यात्म साधना के साथ-साथ आपने साहित्य सृजन में भी अपनी लेखनी चलाई। आपने आचार्य सम्राट पूज्य श्री आत्माराम जी महाराज द्वारा अनूदित जैनागमों का सफल सम्पादन किया और स्वतंत्र साहित्य की रचना भी की। इस साहित्य में-नयवाद, क्रियावाद, आत्मवाद, गृहस्थ धर्म, नमस्कार मंत्र एक विश्लेषण तथा 25 बोल का थोकड़ा आदि आपकी विद्वता और साहित्यिक व्यक्तित्व के द्योतक हैं। आपका साहित्य एक ओर अध्यात्म ज्ञान का स्रोत है तो दूसरी ओर जन जीवन के लिए प्रेरणादायक। आपका देवलोक गमन 17 जून, 1982 ई. में हुआ। 
 
—साहित्य रत्न डा. मुलख राज जैन

प्रस्तुति: देवेन्द्र जैन भूपेश जैन लुधियाना 

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