Edited By ,Updated: 20 Jun, 2015 10:55 AM
रामकृष्ण परमहंस एक अद्भुत संत थे। उन्हें संत कहना गलत है, क्योंकि वे परमहंस थे। हिन्दू धर्म में परमहंस की उपाधि उसे दी जाती है, जो समाधि की अंतिम अवस्था में होता है। रामकृष्ण
रामकृष्ण परमहंस एक अद्भुत संत थे। उन्हें संत कहना गलत है, क्योंकि वे परमहंस थे। हिन्दू धर्म में परमहंस की उपाधि उसे दी जाती है, जो समाधि की अंतिम अवस्था में होता है। रामकृष्ण परमहंस ने दुनिया के सभी धर्मों के अनुसार साधना करके उस परम तत्व को महसूस किया था। उनमें कई तरह की सिद्धियां थीं लेकिन वे सिद्धियों के पार चले गए थे।
उन्होंने विवेकानद को अपना शिष्य बनाया, जो बुद्धि और तर्क में जीने वाला बालक था। रामकृष्ण परमहंस ने विवेकानंद के हर प्रश्र का समाधान कर उनकी बुद्धि को भक्ति में बदल दिया था। यहां प्रस्तुत हैं रामकृष्ण परमहंस और स्वामी विवेकानंद के बीच हुए एक अद्भुत संवाद के अंश:
स्वामी विवेकानंद : मैं समय नहीं निकाल पाता। जीवन आपाधापी से भर गया है।
रामकृष्ण परमहंस : गतिविधियां तुम्हें घेरे रखती हैं, लेकिन उत्पादकता आजाद करती है।
स्वामी विवेकानंद : आज जीवन इतना जटिल क्यों हो गया है?
रामकृष्ण परमहंस : जीवन का विश्लेषण करना बंद कर दो। यह इसे जटिल बना देता है। जीवन को सिर्फ जियो।
स्वामी विवेकानंद : फिर हम हमेशा दुखी क्यों रहते हैं
रामकृष्ण परमहंस : परेशान होना तुम्हारी आदत बन गई है, इसी वजह से तुम खुश नहीं रह पाते।