गणिकाओं पर पड़ा ऐसा प्रभाव बन गई ब्रह्मचर्य की उपासिकाएं

Edited By ,Updated: 24 Jun, 2015 12:53 PM

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माया राम जी महाराज 161वें जन्म दिवस पर विशेष श्रमणत्व की संपदा से सम्पन्न मायाराम जी महाराज ने भारत वर्ष में अहिंसा क्रांति का उद्घोष किया इसलिए वह महावीर के सफल सेनानी सिद्ध हुए। जाति-पाति, ऊंच-नीच जैसी हीन भावनाओं से वह बहुत ऊपर उठ चुके थे।

 माया राम जी महाराज 161वें जन्म दिवस पर विशेष

 श्रमणत्व की संपदा से सम्पन्न मायाराम जी महाराज ने भारत वर्ष में अहिंसा क्रांति का उद्घोष किया इसलिए वह महावीर के सफल सेनानी सिद्ध हुए। जाति-पाति, ऊंच-नीच जैसी हीन भावनाओं से वह बहुत ऊपर उठ चुके थे। गुरुदेव ने अपनी विहार यात्रा में ग्रामानुग्राम विचरण करते हुए मुसलमानों के गांवों में भी अहिंसामय धर्म का घोषण किया। 19वीं सदी के कई बादशाहों ने उनकी ओजस्वी पूर्ण वाणी सुन कर अपने जीवन में परिवर्तन किया। वे भी अहिंसा से अहिंसा की ओर, क्रूरता से करुणा की ओर अग्रसर हुए। 

गुरुदेव को पंजाब की कोयल कह कर पुकारा गया क्योंकि उनके कंठ से निकलने वाले पंचम स्वर अंतर्नाद को सुनकर व्यक्ति वही ठिठक जाता था। श्रोता चाहते हुए भी आगे नहीं बढ़ सकता था। 

एक बार गुरुदेव उदयपुर में रात्रिकालीन सभा में श्रोताओं को अपनी वाणी से मंत्रमुग्ध कर रहे थे। उनका पंचम स्वर अपना जादू फैला रहा था। उस समय उपाश्रय के नीचे से तीन गणिकाएं हंसी-मजाक करती हुईं अपने रास्ते जा रही थीं। उनके नाम थे-लाजां बाई, धापू बाई और चांद बाई। वे जोधपुर नरेश की राज वेश्याएं थीं। उदयपुर में महाराणा फतेह सिंह के महलों में आमंत्रित थीं। वहीं जा रही थीं कि मधुर कंठ से निकले अनमोल स्वर उनके कर्ण कुहरों में पड़े, बस वहीं उनके पांव रुक गए। सुनती रहीं...और आनंदित होती रहीं। ऐसा आनंद उन्हें पहले कभी नहीं मिला। गाने की कला उन वेश्याओं के पास भी थी। पर इस राग को उन्होंने पूर्व कभी नहीं सुना था। गायन पूर्ण हुआ। वेश्याओं ने गायक मुनि से तत्काल मिलने की इच्छा व्यक्त की। गुरुदेव ने कहलवाया कि वह सुबह ही मिल सकती हैं।  

सुबह वेश्याओं ने गुरुदेव के दर्शन किए। गणिकाओं ने कहा, ‘‘आप ये कौन से जादुई स्वर से गाते हो, हमें भी बताओ। हमने तो ये राग कभी सुना ही नहीं।’’

 तब गुरुदेव ने कहा, ‘‘मेरा संगीत किसी का दिल बहलाने को नहीं ये तो आत्मा का स्वर है। आत्म संगीत है। अगर तुम सादगी का संन्यास धारण कर लो तो तुम्हें भी संगीत की आत्मा मिल जाएगी। तुम्हारा अपना हर्ष तुम्हारा राग बन कर गूंजने लगेगा। ये राग होगा ब्रह्मचर्य का, शील का, सदाचार का।’’  

गुरुदेव के एक-एक शब्द अमृत की बूंदों के समान उनके अंतर में उतर रहे थे। पहली बार किसी पुरुष ने उन्हें माता और बहन का मान दिया था। तीनों विभोर थीं, महामुनि की प्रेरणा ने उन्हें नारी जीवन के अस्तित्व से परिचित कराया। भोग से योग का मार्ग दिखाया। अब उन्होंने फिर कभी महलों में न जाने की प्रतिज्ञा की और सादगी की साधिकाएं बन गईं। ब्रह्मचर्य की उपासिकाएं बनीं। 

 इसी प्रकार महामुनि मायाराम किसी के पैगम्बर, किसी के देव, किसी के लिए राम और किसी के मसीहा बन कर उनकी श्रद्धाओं के केंद्र बने।      

 -साध्वी शुभिता 

 प्रस्तुति : दविंद्र भूपेश जैन, लुधियाना

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