परमात्मा के साक्षात दर्शन करने वाले अपना नाम और पता दें

Edited By ,Updated: 25 Jun, 2015 08:58 AM

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स्वामी रामतीर्थ विदेश यात्रा से लौटे। टिहरी गढ़वाल के राजा उनके बड़े भक्त थे। उन्होंने स्वामी रामतीर्थ से अनुरोध किया ‘कोई ऐसा मार्ग बताएं जिससे मुझे परमात्मा के साक्षात दर्शन हो जाएं।’

स्वामी रामतीर्थ विदेश यात्रा से लौटे। टिहरी गढ़वाल के राजा उनके बड़े भक्त थे। उन्होंने स्वामी रामतीर्थ से अनुरोध किया ‘कोई ऐसा मार्ग बताएं जिससे मुझे परमात्मा के साक्षात दर्शन हो जाएं।’ 

रामतीर्थ ने कहा, आपको परमात्मा के दर्शन करवा दूंगा। आप बस अपना नाम और पता दे दें ताकि मैं वह परमात्मा तक पहुंचा दूं।

राजा ने अपना नाम और पता लिखकर उन्हें दे दिया। तब रामतीर्थ ने पूछा कि यह पता स्थायी है ना? राजा के हां कहने पर उन्होंने सवाल किया, क्या आप 60 साल पहले यहीं थे और क्या 50 साल बाद भी आपका पता यही रहेगा? 

राजा ने हैरान होकर कहा, ‘क्या बात करते हैं आप? 60 साल पहले तो मेरा जन्म ही नहीं हुआ था और 50 साल बाद मैं रहूंगा कि नहीं यह कौन जानता है।’ 

स्वामी जी ने कहा, जब आपको अपना ही पता नहीं, तब परमात्मा का पता कैसे पाएंगे? पहले अपना पता कर लें, परमात्मा के दर्शन अपने आप हो जाएंगे।

ऋषभदेव ने अपने बेटों से कहा था, ‘जाओ तुम्हें आत्मा का साम्राज्य देता हूं जिसे तुमसे कोई छीन नहीं सकता।’ 

यह साम्राज्य क्या है, इसके अनगिनत उत्तर दिए गए हैं। लेकिन किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंचा जा सका है। इसका मूल कारण हमारी बुनियादी भूल है। हमने हर बार इसे शब्दों के माध्यम से समझने की कोशिश की इसलिए शब्दजाल में अटक गए। उनकी बातों में अंतर सिर्फ शब्दों का है। अनंत आकाश को कोई शून्य कहता है तो कोई परम सत्ता।

शब्दों की मीमांसा करें तो हमें सर्वत्र भेद ही भेद दिखाई देते हैं लेकिन अभेद दृष्टि से देखें तो एक में, अनंत में, शून्य में कोई भेद नहीं। इसका अनुभव वही कर सकता है जो इंद्रियों के पार चला गया हो। वह मौन हो जाता है। वह जो भी कहता है, एक दूरस्थ ध्वनि-संकेत जैसा होता है। इसे पकड़कर बुद्धि अपने अर्थ निकाल लेती है, अलग-अलग परम्पराएं खड़ी कर देती है।

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