रूष्ट होकर जब जाने लगे भगवान शिव तो देवी पार्वती ने कैैसे रोका उनका मार्ग

Edited By ,Updated: 10 Jul, 2015 01:27 PM

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उपासना शब्द तीन शब्दों उप+अस+नम के योग से बना है। महर्षियों एवं विद्वानों ने इस शब्द की परिभाषा देते हुए कहा है ‘उपगम्य असनम् इति उपासना’ अर्थात समीप जाकर बैठने को उपासना कहा जाता है। यहां ‘समीप बैठना’ वैध इष्ट होने से यह शब्द परिचर्या व पूजा के...

 

 

उपासना शब्द तीन शब्दों उप+अस+नम के योग से बना है। महर्षियों एवं विद्वानों ने इस शब्द की परिभाषा देते हुए कहा है ‘उपगम्य असनम् इति उपासना’ अर्थात समीप जाकर बैठने को उपासना कहा जाता है। यहां ‘समीप बैठना’ वैध इष्ट होने से यह शब्द परिचर्या व पूजा के अर्थ में परिवर्तित हो जाता है।

पूजा, भक्ति, तपस्या तथा ध्यान और अनुष्ठान आदि शब्द इसके अत्यंत निकटार्थक एवं सामान्य अंतरंगार्थक हैं। उपास्ति, उपासा और उपासना आदि भी इसी के रूप हैं। भारतवर्ष के भिन्न-भिन्न भागों में देवी को भिन्न-भिन्न नामों से पुकारा जाता है। उत्तर प्रदेश में दुर्गा, बंगाल में काली, राजस्थान में गौरी व  अम्बा, गुजरात में अम्बिका और रुद्राणी, मिथिला में उमा, कन्नौज में कल्याणी कश्मीर में भवानी आदि।

इस देवी के भिन्न-भिन्न कार्यकलापों से आगे चलकर और भी अनेकों रूप हो गए। देवी गौरी, उमा, पार्वती, दुर्गा, काली, भवानी, कपालिनी, चामुंडा, रुद्र से संबंध होने के कारण भवानी मां पार्वती के रूप में नारी की सम्पूर्ण श्रृंगार कलाओं से स्वयं को सुसज्जित करती हैं। दुर्गा के रूप में शस्त्रों से सुसज्जित हो रणक्षेत्र में खड़ी होती हैं। मृत्यु के देवता यम की बड़ी बहन के नाते वह काले वेश में रेशम धारण किए रहती हैं।

प्राचीन समय की बात है कि भगवान शंकर पार्वती पराम्बा से अप्रसन्न होकर कहीं चलने को तत्पर हुए। तभी मां भगवती ने कहा, ‘‘आप इस प्रकार रुष्ट होकर कहां जा रहे हैं?’’ 

तभी भगवान शंकर ने उत्तर दिया, ‘‘मेरी जहां इच्छा होगी वहां मैं जाऊंगा।’’

मां भगवती ने मुस्कराते हुए कहा, ‘‘हमारे पास से अन्यत्र जाने का विचार आप त्याग दीजिए।’’

परंतु भगवान शिव ने भगवती के शब्दों पर ध्यान न देते हुए अन्यत्र जाने के विचार से प्रस्थान कर ही दिया। कुछ दूर जाने पर भगवान शिव ने देखा कि मार्ग अवरुद्ध करके श्री महाकाली सामने खड़ी हैं। पास आने पर वह भगवान शंकर से बोलीं, ‘‘इस दिशा में आप नहीं जा सकते।’’

पुन: भगवान शंकर ने उस ओर से प्रत्यावर्तित होकर विभिन्न दिशाओं की ओर प्रस्थान किया, परंतु जिस दिशा की ओर भी भगवान गए, उन-उन दिशाओं में मां भगवती का कोई न कोई रूप मार्ग रोके हुए खड़ा था।

इस प्रकार भगवती मां पराम्बा के दश दिशाओं में दश रूप प्रकट हुए जो दस महाविद्या के नाम से विख्यात हुए।

 

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