ज्योतिष की राय: आपके ऊपर मांगलिक दोष हावी है या नहीं, जानें

Edited By Punjab Kesari,Updated: 01 Jan, 2018 02:59 PM

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मंगली दोष का विचार कुंडली मिलान के अंतर्गत किया जाता है, मंगल दोष को कुज दोष, भौम दोष, मांगलिक दोष आदि नामों से भी जाना जाता है। दक्षिण भारत में इसे कलत्र दोष के नाम से जाना जाता है। यदि किसी जातक की कुंडली मंगली दोष से प्रभावित है तो उसे मांगलिक...

मंगली दोष का विचार कुंडली मिलान के अंतर्गत किया जाता है, मंगल दोष को कुज दोष, भौम दोष, मांगलिक दोष आदि नामों से भी जाना जाता है। दक्षिण भारत में इसे कलत्र दोष के नाम से जाना जाता है। यदि किसी जातक की कुंडली मंगली दोष से प्रभावित है तो उसे मांगलिक कहा जाता है। वर-वधू की कुंडली मिलान के समय मांगलिक विचार किया जाता है। वर-वधू की कुंडली में यदि 1, 4, 7, 8 व 12वें भाव में मंगल स्थित हो तो मंगली दोष होता है, इस स्थिति में दाम्पत्य जीवन में बाधाएं आ सकती हैं। यह समस्या तभी होगी जब मंगल किसी भी शुभ ग्रह के प्रभाव में नहीं होगा।


यदि शुभ ग्रह का प्रभाव बुध, गुरु, शुक्र की युति या दृष्टि हो तो दाम्पत्य जीवन घातक नहीं होगा परंतु दक्षिण भारत में द्वितीय भावगत मंगल को भी मांगलिक माना जाता है, इस कारण वैवाहिक जीवन के लिए कुंडली के प्रथम, द्वितीय, चतुर्थ, सप्तम, अष्टम व द्वादश भावों का महत्वपूर्ण स्थान होता है क्योंकि प्रथम भाव से स्वास्थ्य, द्वितीय भाव से धन, कुटुंब, वाणी व दाम्पत्य जीवन को भी दर्शाता है, चतुर्थ भाव सुख व भौतिक सुख- सुविधाओं में सप्तम भाव काम व दाम्पत्य जीवन को भी दर्शाता है। इसी प्रकार अष्टम भाव वधू के लिए सौभाग्य या पति व स्वयं की आयु का भाव है तथा द्वादश भाव शैय्या सुख का कारक है।


फलित ज्योतिष ग्रंथों में दिए गए मंगल दोष परिहार मंगल दोष को नष्ट नहीं कर सकते हैं, केवल उसकी तीव्रता में कमी ला सकते हैं। कुछ विशेष परिस्थितियों में मंगल दोष जातक की कुंडली में स्वत: न्यून या निरस्त हो जाता है।


वर-वधू दोनों की कुंडलियों में मंगल दोष हो तो विवाह शुभ होता है, यदि नक्षत्र राशि मिलान में गुणों की अधिकता हो तो मंगलदोष होने पर भी विवाह किया जा सकता है। विभिन्न राशियों में मंगलदोष की स्थिति दोष को भंग/निरस्त करने वाली होती है। कुछ ज्योर्ति पदों की मान्यता है कि कुछ परिस्थितियों में मंगल की स्थिति से मंगलदोष समाप्त हो जाता है। यदि मंगल चार राशियों अर्थात मेष, कर्क, तुला व मकर में हो तो मंगल दोष नहीं होता, यदि जातक की जन्म कुंडली में मंगल स्वराशि मेष व वृश्चिक या उच्च राशि मकर में स्थित हो अथवा नवांश में स्वराशि या उच्च राशिगत हो तो मंगलदोष समाप्त हो जाता है, साथ ही यदि मंगलदोष्क्त भावों में मित्र ग्रह सूर्य, चंद्र व गुरु की राशियों में स्थित हो, तो भी मंगलदोष नहीं होता है।


यदि मंगल कर्क राशि में नीच राशिगत या सूर्य राशि सिंह में हो तो भी मंगल दोष निरस्त हो जाता है। अस्त, वक्री या बुध की राशियों मिथुन, कन्या में स्थित होने से मंगल दोष निरस्त हो जाता है। मंगल दोषोक्त भावों के स्वामी जातक की कुंडली में केन्द्रीय त्रिकोण में स्थित होने से मांगलिक दोष नहीं होगा। कुंडली में केवल बली मंगल की स्थिति ही दोषपूर्ण होती है अथवा कुंडली में निर्बल मंगल दोष रहित होता है।


यदि जातक की कुंडली में केंद्र भावों में चंद्रमा हो तो भी मंगलदोष निरस्त हो जाता है, ऐसी ही कुछ अन्य अवस्थाओं में मांगलिक दोष निरस्त हो जाता है जैसे मंगल कुंडली के प्रथम भाव में मेष राशि में, चतुर्थ भाव में वृश्चिक राशि में, सप्तम भाव में मकर या वृष राशि में अष्टम भाव में कर्क या कुंभ राशि में और द्वादश भाव में धनु राशि में स्थित होने से भी मांगलिक दोष निरस्त हो जाता है।


दोष कारी कुजो यस्य बलीचे दुक्त दोष कृत। दुर्बल: शुभ दृष्टोवा सूर्येणस्मऽगतोपिवा।।


अर्थात जन्म कुंडली में मंगल अनिष्ट स्थानों में बलवान होकर पड़ा होगा तभी वह दोषकारी होगा अन्यथा दुर्बल होने, शुभ ग्रह से दृष्ट होने या सूर्य के साथ अस्त या वक्री होने पर दोषकारी नहीं होगा। उत्तर भारतीय परम्परा के अनुसार प्रथम भाव विराजित मंगल होने पर मंगल दोष होता है लेकिन दक्षिण भारत की परम्परा के अनुसार द्वितीय भाव में मंगल की स्थिति भी मांगलिक दोष का कारण माना जाता है।

 
परंतु आधुनिक ज्योतिषी लग्न व द्वितीय भाव में स्थित मंगल को मंगली मानते हैं, आधुनिक विद्वानों के मतानुसार पुरुष व स्त्री दोनों की कुंडली में भिन्न-भिन्न भावों में मंगलदोष माना है, स्त्री की कुंडली में प्रथम, द्वितीय, चतुर्थ, पंचम, सप्तम, अष्टम व द्वादश भाव में मंगल की स्थिति मंगलदोष निर्मित होती है।


स्त्री के लिए अष्टम भाव का महत्व 7वें भाव से कम नहीं है, क्योंकि अष्टम भाव से स्त्री के मांगल्य का विचार किया जाता है। अत: पति सुख के लिए कन्या की जन्म कुंडली में अष्टम भाव का महत्व सप्तम भाव से अधिक होता है। पुरुष की कुंडली में सप्तम भाव व स्त्री की कुंडली में सप्तम व अष्टम भाव मंगल द्वारा प्रभावित होते हैं। 


इस प्रकार 12 लग्नों (मेष से मीन) तक केवल 72 स्थितियों में मंगल की स्थिति मंगलदोष का निर्माण करती है (यदि द्वितीय भाव में स्थित मंगल को भी लिया जाए) कुंडली में 60 स्थितियों में मंगलदोष निरस्त हो जाता है, अत: मात्र 12 स्थितियों में ही मंगलदोष प्रभावी रहता है।


मंगल दोष के सैद्धांतिक पक्ष के साथ-साथ व्यावहारिक व पारंपरिक पक्ष का भी अध्ययन करना अति आवश्यक है व्यवहार में मंगल दोष के साथ अनेक मान्यताएं, अवधारणाएं, नियम व शोध हो चुके हैं तो इस बारे में हमारे विद्वानों के मतानुसार लग्न कुंडली के साथ चंद्र एवं शुक्र कुंडली से मंगली दोष का निर्धारण किया जाता है इसमें चंद्रमा व शुक्र जिस भाव में स्थित हों उस भाव को लग्न मानकर चंद्र व शुक्र कुंडली का निर्माण किया जाता है। कुछ विद्वानों की मान्यता है कि मंगलदोष सप्तमेश से भी देखा जाना चाहिए अर्थात सप्तमेश कुंडली में जिस भाव में स्थित हो उससे 1, 4, 7, 8 व 12वें भाव में मंगल हो तो मंगलदोष होता है परंतु वर्तमान में यह मान्यता स्वीकार नहीं है। अधिकतर देखा गया है कि यहां हर दूसरे या तीसरे जातक को कहा जाता है कि आपकी कुंडली में मंगलदोष है, जबकि हमारे अनुभव के अनुसार पाया गया है कि लगभग लाख में से दस जातक ही पूर्ण मांगलिक दोष से प्रभावित होते हैं। 

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