Kundli Tv- जानें, सूर्य देव के सालों पुराने इस मंदिर का रहस्य

Edited By Jyoti,Updated: 13 Nov, 2018 04:37 PM

aurangabad surya temple

कार्तिक मास की षष्ठी के दिन छठ पूजा का पर्व मनाया जाता है। यह त्योहार ज्यादातर पूर्वी भारत के बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश और नेपाल के कुछ क्षेत्रों में मनाया जाता है। छठ पूजा सूर्य देव और उनकी पत्नी को समर्पित है। छठ पूजा बिहार में बड़ी ही...

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कार्तिक मास की षष्ठी के दिन छठ पूजा का पर्व मनाया जाता है। यह त्योहार ज्यादातर पूर्वी भारत के बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश और नेपाल के कुछ क्षेत्रों में मनाया जाता है। छठ पूजा सूर्य देव और उनकी पत्नी को समर्पित है। छठ पूजा बिहार में बड़ी ही धूम-धाम से मनाया जाता है। इस दिन परिवार के सारे सदस्य व्रत रखते हैं और भजन कीर्तन करते हैं। इसके साथ ही इस खास दिन छठी मईया की पूजा करने का भी विधान रहता है। कहा जाता है कि इससे सूर्य देव प्रसन्न होते हैं। तो आइए छठ पर्व के इस खास मौके पर हम आपको बताते हैं सूर्य देव के ऐसे मंदिर के बारे में जहां छठ पर्व पर लाखों श्रद्धालु उमड़ते हैं। आइए जानते हैं इस मंदिर के बारे में-
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सूर्य देव का ये मंदिर औरंगाबाद से 18 किलोमिटर दूर स्थित है। ये करीब सौ फुट ऊंचा और लगभग डेढ़ लाख वर्ष पुराना है। मान्यता के अनुसार इस मंदिर का निर्माण त्रेता युग में स्वयं भगवान विश्वकर्मा ने किया था। हर साल छठ पूजा के पर्व पर यहां लोगों की भीड़ जमा होती है। इस भवन में सूर्य देव की प्रतिमाएं तीनों रूपों उदयाचल (सुबह), मध्याचल (दोपहर), और अस्ताचल (अस्त) सूर्य के रूप में विराजमान हैं। देश के तकरीबन सभी सूर्य मंदिर पूर्व दिशा में है, यही एकमात्र ऐसा सूर्य मंदिर है जो पश्चिमाभिमुख है यही इस मंदिर की खासियत है। 

इस मंदिर से जुड़ी एक और मान्यता प्रचलित है। इसके अनुसार औरंगाबाद के ऐल नामक राजा को कुष्ठ रोग था। एक दिन वो इलाके के जंगल में शिकार खेलने गया, शिकार खेलते-खेलते उसे प्यास लगी। उसने अपने सेनापति को पानी लाने को कहा। सेनापति पानी की तलाश करते हुए एक तालाब के पास पहुंचा और उसने वहां से एक लोटा पानी लेकर राजा को दिया। राजा के हाथ में जहां-जहां पानी का स्पर्श हुआ, वहां का कोढ़ ठीक हो गया। राजा ये देख बहुत प्रसन्न हुआ और सेनापति के साथ उस तालाब तक गया। उसने उस तालाब के पानी से स्नान किया और उसका कुष्ठ रोग ठीक हो गया। इसके बाद राजा सेनापति के साथ महल में आ गया। रात को सपने में उसे वही तालाब दिखाई दिया जहां उसने स्नान किया था और तालाब में उसे तीन मूर्तियां भी दिखाई दी। अगले दिन सुबह राजा उसी जंगल में गया। सपने में दिखाई दी जाने वाली मूर्तियां उसे तालाब में उसी प्रकार दिखाई दी। मूर्तियां निकालकर राजा ने पास में ही एक मंदिर बनवाकर उसमें उनकी स्थापना कर दी। तब से लोगो में इस मंदिर के प्रति आस्था बढ़ गई। मंदिर के साथ उस तालाब का महत्व भी बढ़ गया। 
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इस तालाब को सूर्यकुंड के नाम से जाना जाता है। कार्तिक महीने में छठ करने लाखों की संख्या में श्रद्धालु यहां आते हैं। सूर्यकुंड में स्नान कर श्रद्धालु सूर्यदेव की पूजा करते हैं। मंदिर का पूजारी सच्चिदानंद रोज़ाना चार बजे घंटी बजाकर भगवान को उठाते हैं, उसके बाद पुजारी भगवान को नहलाते हैं, चंदन करते हैं, नए वस्त्र पहनाते हैं। फिर इसके बाद भगवान को आदित्य हृदय स्त्रोत का पाठ सुनाया जाता है। सारा साल यहां लोग माथा टेकने वाले भक्तों की भीड़ देखने को मिलती रहती है लेकिन छठ पूजा के दिन यहां दूर-दूर से लोगों की भीड़ उमड़ती हैं।
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