सत्य के साथ बापू के प्रयोग, दे सकते हैं आपके जीवन को नई दिशा

Edited By Punjab Kesari,Updated: 14 Dec, 2017 02:46 PM

bapus experiment with truth can give your life new direction

राजकोट के अल्फ्रैड हाई स्कूल की घटना है। हाई स्कूल का मुआयना करने आए हुए थे, शिक्षा विभाग के तत्कालीन इंस्पैक्टर जाइल्स। नौवीं कक्षा के विद्यार्थियों को श्रुतिलेख के रूप में अंग्रेजी के 5 शब्द बोले जिनमें से एक शब्द था-केटल।

राजकोट के अल्फ्रैड हाई स्कूल की घटना है। हाई स्कूल का मुआयना करने आए हुए थे, शिक्षा विभाग के तत्कालीन इंस्पैक्टर जाइल्स। नौवीं कक्षा के विद्यार्थियों को श्रुतिलेख के रूप में अंग्रेजी के 5 शब्द बोले जिनमें से एक शब्द था-केटल। 


कक्षा का एक विद्यार्थी मोहनदास इस शब्द की वर्तनी ठीक नहीं लिख सका। मास्टर साहब ने उसकी कापी देखी और उसे बूट की ठोकर से इशारा किया, वह अगले विद्यार्थी की कापी से नकल करके स्पैलिंग ठीक लिख ले, पर मोहनदास ने ऐसा नहीं किया। अन्य सभी विद्यार्थियों के सभी शब्द सही थे। अकेले मोहनदास इस परीक्षा में शत-प्रतिशत रिजल्ट न दिखा सके। इंस्पैक्टर के चले जाने के पश्चात मास्टर जी ने कहा तू बड़ा बुद्धू है मोहनदास! 


मैंने तो तुझे इशारा किया था पर तूने अपने आगे वाले लड़के की कापी से नकल तक नहीं की। शायद तुझे अक्ल ही नहीं!


मोहनदास ने दृढ़ता से कहा कि ऐसा करना धोखा देने और चोरी करने जैसा है, जो मैं हरगिज नहीं कर सकता।


यही बालक मोहनदास आगे चलकर राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के नाम से प्रसिद्ध हुए। भला बापू को कौन नहीं जानता? महात्मा गांधी सत्य के अनुयायी थे, उनके हृदय में सत्य ही ईश्वर था। उसी की साधना में वह दिनभर लगे रहे। अपने जीवनकाल में ही वह पौराणिक पुरुष बन गए।


बापू के विद्यार्थी जीवन की ही घटना है। उन्होंने बचपन में दो नाटक देखे थे- ‘सत्य हरीशचंद्र’ और बालक ‘श्रवण कुमार’ इन नाटकों का उन पर बड़ा असर पड़ा। ‘सत्य हरीशचंद्र’ नाटक देखकर बापू ने जीवनभर सत्य बोलने का व्रत लिया और ‘श्रवण कुमार’ नाटक देखकर मातृ-पितृ भक्ति का उन्होंने संकल्प लिया।


एक बार उनके स्कूल में खेल-कूद जरूरी कर दिया गया। उनकी रुचि हालांकि खेल-कूद में नहीं थी फिर भी वह नियम पालन के लिए समय से स्कूल पहुंचने की कोशिश करते।
बापू एक दिन अपने पिता की सेवा में लगे हुए थे। आसमान में बादल भी छाए हुए थे। उन्हें समय का अंदाजा नहीं हो पाया। वह स्कूल पहुंचे तो काफी देर हो चुकी थी। सभी चले गए थे। अगले दिन हैड मास्टर ने उन्हें बुलाकर पूछा-कल खेल में क्यों नहीं आए?


मेरे पास घड़ी नहीं थी और आसमान में बादल भी थे। इस नाते मुझे समय का ठीक से ज्ञान नहीं हो सका, बापू ने सफाई दी लेकिन हैड मास्टर को उनकी बातों पर यकीन नहीं हुआ। उन्होंने समझा कि यह लड़का झूठ बोल रहा है। हैडमास्टर ने उन पर दो आने का जुर्माना कर दिया, बापू रोने लगे। 


वह जुर्माने के लिए नहीं रो रहे थे, दुख तो उन्हें इस बात का था कि उन्हें झूठा समझा गया। वह कहते रहे मैं झूठ नहीं बोल रहा हूं फिर भी उन्होंने उनकी बात नहीं सुनी, लेकिन बापू इससे निराश नहीं हुए।


उसी समय उन्होंने मन में निश्चय किया कि वह जीवन में कभी भी झूठ नहीं बोलेंगे। साथ ही वह अपने अंदर ऐसा आत्मबल पैदा करेंगे कि लोग भी उसे सच ही मानें।

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