Basant Panchami 2021: ये हैं मां सरस्वती के अनन्य भक्त, देवी के आशीर्वाद से बने महान विद्वान

Edited By Jyoti,Updated: 02 Feb, 2021 04:44 PM

basant panchami 2021

बसंत पंचमी का त्यौहार प्रत्येक वर्ष माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि जो इस बार 16 फरवरी मंगलवार के दिन पड़ रहा है, को मनाया जाता है।

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बसंत पंचमी का त्यौहार प्रत्येक वर्ष माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि जो इस बार 16 फरवरी मंगलवार के दिन पड़ रहा है, को मनाया जाता है। इस दिन देवी सरस्वती की पूजा का अधिक महत्व होता है। अगर देवी सरस्वती के बारे में बात करें तो शास्त्रों में इन्हें शिक्षा की देवी कहा जाता है। साथ ही साथ इन्हें संगीत की भी देवी कहा गया है। यही कारण है कि तमाम शिक्षा संस्थानों में आज भी देवी सरस्वती की मूर्ति स्थापित है, और इनकी विधि वत पूजा भी की जाती है। कहा जाता है जिस व्यक्ति पर मां सरस्वती की कृपा होती है, उस जातक को अपने जीवन में शिक्षा से जुड़ी कभी कोई परेशानी नहीं आती। और इस बात का प्रमाण हमारे धार्मिक शास्त्रों में बाखूबी पढ़ने को मिलता है। जी हां, आज हम आपको देवी सरस्वती के तीन ऐसे ही भक्तो के बारे में बताने वाले हैं। तो चलिए आपको बताते हैं इन तीन भक्तों के बारे में-
 

धार्मिक शास्त्रों के अनुसार बंसत पंचमी के दिन सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा जी ने इस दिन यानि माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि के दिन देवी सरस्वती की रचना की थी। जिस कारण इस दिन इनका पूजन करना अधिक लाभदायक माना जाता है।

इसके अलावा धार्मिक ग्रंथों में देवी सरस्वती के तीन भक्तों के बारे में अच्छे से वर्णन किया गया है, जो है कालिदास, वरदराजाचार्य तथा वोपदेव। पौराणिक कथाओं के अनुसार ये तीनों ऐसे भक्त थे जिन्होंने माता सरस्वती की पूजा-अर्चना की बदौलत से अल्प बुद्धि का ज्ञान अर्जित कर महान विद्वान का पद हासिल किया।

महाकवि कालिदास:
बता दें महाकवि कालिदास संस्कृत भाषा के महान कवि थे। इन्होंने हिंदू पौराणिक कथाओं और दर्शन को आधार बनाकर अपनी अधिकतर रचनाएं संस्कृत में की। बताया जाता है कि कालिदास जी की सबसे प्रसिद्ध रचना ‘अभिज्ञानशाकुन्तल’ जबकि सर्वश्रेष्ठ रचना ‘मेघदूत’ मानी जाती है। मान्यताओं के मुताबिक कालिदास जी वैदर्भी रीति के कवि हैं।

वरदराज:
इनके बारे में कहा जाता है कि वरदराज संस्कृत व्याकरण के महापंडित, जिस कारण उनका नाम वरदराजाचार्य पड़ा। शास्त्रों में इनके बारे में जो उल्लेख किया गया है उसके मुताबिक वरदराज महापंडित भट्टोजि दीक्षित के शिष्य थे। जब वे विद्यालय में पढ़ते थे तो इन्हें मंदबुद्धि कहा जाता था। इन्होंने अपने गुरु की ‘सिद्धांतकौमुदी’ पर तीन ग्रंथों की रचना किया, जिनके नाम है मध्यसिद्धांतकौमुदी, लघुसिद्धांतकौमुदी और सारकौमुदी।

वोपदेव:
ये देवगिरी के यादव राजाओं के प्रसिद्द विद्वान मंत्री हेमाद्रि के समकालीन थे। जो यादव राजाओं के दरबार के मान्य विद्वान थे। इन्हें एक कवि, वैद्द्य और वैयाकरण ग्रंथाकार के तौर पर समाज में मान-सम्मान प्राप्त हुआ। वोपदेव जी द्वारा रचित ‘मुग्दबोध’ व्याकरण का एक प्रसिद्द ग्रंथ है। इसके अलावा वोपदेव ने ‘मुक्ताफल’ और ‘हरिलीला’ नामक ग्रंथों की भी रचना की है।

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