कर्म करने से पहले सोचे क्या अच्छा है और क्या बुरा, पढ़ें दिलचस्प कहानी

Edited By ,Updated: 11 May, 2017 11:33 AM

before thinking about what is good bad read interesting story

महाभारत में एक कथा आती है। भीष्म पितामह युधिष्ठिर से बोले, ‘‘किसी निर्जन वन में एक जितेंद्रिय महर्षि रहते थे। वह सिद्धि से सपंन सदा सत्वगुण में स्थित, सभी प्राणियों की बोली एवं मनोभाव को

महाभारत में एक कथा आती है। भीष्म पितामह युधिष्ठिर से बोले, ‘‘किसी निर्जन वन में एक जितेंद्रिय महर्षि रहते थे। वह सिद्धि से सपंन सदा सत्वगुण में स्थित, सभी प्राणियों की बोली एवं मनोभाव को जानने वाले थे। महर्षि के पास क्रूर स्वभाव वाले सिंह, बाघ, चीते, भालू तथा हाथी आदि भी आते थे। वे हिंसक जानवर भी ऋषि के शिष्य की भांति उनके पास बैठते थे। एक कुत्ता उन मुनि में ऐसा अनुरक्त था कि उनको छोड़कर कहीं नहीं जाता था। एक दिन एक चीता उस कुत्ते को खाने के लिए आया। कुत्ते ने महर्षि  से कहा, ‘‘भगवन! यह चीता मुझे मार डालना चाहता है। आप ऐसा करें जिससे मुझे इस चीते से भय न हो।’’


मुनि, ‘‘बेटा! इस चीते से तुम्हें भयभीत नहीं होना चाहिए। लो, मैं तुम्हें अभी चीता ही बना देता हूं।’’ मुनि ने उसे चीता बना दिया उसे देख दूसरे चीते का विरोधी भाव दूर हो गया।


एक दिन एक भूखे बाघ ने उस चीते का पीछा किया। वह पुन: ऋषि की शरण में आया। इस बार महर्षि ने उसे बाघ बना दिया तो जंगली बाघ उसे मार न सका। एक दिन उस बाघ ने अपनी तरफ आते हुए एक मदोन्मत हाथी को देखा। वह भयभीत हो कर फिर ऋषि की शरण में गया। मुनि ने उसे हाथी बना दिया तो जंगली हाथी भाग गया।


कुछ दिन बाद वहां एक केसरी सिंह आया। उसे देख कर हाथी भय से पीड़ित हो ऋषि के पास गया। मुनि ने उसे सिंह बना दिया। उसे देखकर जंगली सिंह स्वयं ही डर गया।
एक दिन वहां समस्त प्राणियों का हिंसक एक शरभ आया, जिसके 8 पैर और ऊपर की ओर नेत्र थे। शरभ को आते देख सिंह भय से व्याकुल हो मुनि की शरण में आया। मुनि ने उसे शरभ बना दिया। जंगली शरभ उससे भयभीत होकर तुरंत भाग गया।

 

मुनि के पास शरभ सुख से रहने लगा। एक दिन उसने सोचा कि ‘महर्षि के केवल कह देने मात्र से मैंने दुर्लभ शरभ का शरीर पा लिया। दूसरे भी  बहुत-से मृग और पक्षी हैं जो अन्य भयानक जानवरों से भयभीत रहते हैं। ये मुनि उन्हें भी शरभ का शरीर प्रदान कर दें तो? किसी दूसरे जीव पर ये प्रसन्न हों और उसे भी ऐसा ही बल दें उसके पहले मैं महर्षि का वध कर डालूंगा।’’

 

उस कृतघ्न शरभ का मनोभाव जान महाज्ञानी मुनिश्वर बोले, ‘‘यद्यपि तू नीच कुल में पैदा हुआ था तो भी मैंने स्नेहवश तेरा परित्याग नहीं किया। और अब हे पापी! तू इस प्रकार मेरी ही हत्या करना चाहता है, अत: तू पुन: कुत्ता हो जा।’’

 

महर्षि के शाप देते ही वह मुनिजन द्रोही दुष्टात्मा नीच शरभ में से फिर कुत्ता बन गया। ऋषि ने हुंकार करके उस पापी को तपोवन से बाहर निकाल दिया।

 

उस कुत्ते की तरह ही कुछ लोग ऐसे होते हैं कि जो महापुरुष उनको ऊपर उठाते हैं जिनकी कृपा से उनके जीवन में सुख, शांति, समृद्धि आती है और जो उनके वास्तविक हितैषी होते हैं, उन्हीं का बुरा सोचने और करने का जघन्य अपराध करते हैं। 

 

संत तो दयालु होते हैं वे ऐसे पापियों के अनेक अपराध क्षमा कर देते हैं पर नीच लोग अपनी दुष्टता नहीं छोड़ते। कृतघ्न, गुणचोर, निंदक अथवा वैर भाव रखने वाला व्यक्ति अपने ही विनाश का कारण बन जाता है।

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