Motivational Story: ये काम करने से खुद को रोक लेंगे तो सदा सुखी रहेंगे

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 29 Sep, 2021 01:29 PM

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एक परी थी गुलाबी पंखों वाली, इसलिए सब उसे गुलाबी परी कहते थे। उसे झील में नहाना पसंद था वह चांदनी रातों में धरती पर आती और एक झील में स्नान करके वापस चली जाती। झील के किनारे पुराने

Inspirational Story: एक परी थी गुलाबी पंखों वाली, इसलिए सब उसे गुलाबी परी कहते थे। उसे झील में नहाना पसंद था वह चांदनी रातों में धरती पर आती और एक झील में स्नान करके वापस चली जाती। झील के किनारे पुराने वृक्ष पर नटखट बंदर रहता था। उसके बालों में बड़ी-बड़ी जुएं थीं। गुलाबी परी नहाने आती तो अपने पंख उतारकर पेड़ के पास रख देती जिनकी महक से बंदर की जुओं में कुलबुलाहट पैदा हो जाती और वे बंदर को काटने लगती थीं। बंदर परेशान हो जाता था।

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एक दिन बंदर की नजर परी के पंखों पर पड़ी तो उसकी समझ में आ गया कि इनकी महक से ही जुएं उसे काटती हैं। वह उन्हें कहीं दूर फैंक देने की सोचने लगा।

अगली बार जब गुलाबी परी ने अपने पंख उतारकर पेड़ के पास रखे और झील में नहाने लगी तो बंदर ने मौका देख कर उसके पंख उठा लिए और पेड़ की सबसे ऊंची डाली पर जा बैठा और खौं-खौं कर स्नान कर रही परी को चिढ़ाने लगा। बंदर की खौं-खौं की आवाज सुनकर परी ने पेड़ की ओर देखा।
उसकी निगाह बंदर पर पड़ गई, जो उसके पंख दिखाकर उसे चिढ़ा रहा था। परी बंदर के आगे हाथ जोड़कर रुआंसे स्वर में बोली, ‘‘बंदर मामा! मेहरबानी करके मेरे पंख लौटा दो।’’

बदले में बंदर ने उसे घुड़की दी। वह बोला, ‘‘भाग जा तेरे इन पंखों के कारण मैं आधा रह गया हूं। अब मैं इन्हें नहीं दूंगा।’’

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बंदर ने एक-एक पंख दोनों हाथों में पकड़ लिए और उनसे वह अपना बदन खुजलाने लगा। कुछ ही देर में एक करिश्मा हुआ। पंखों का हिलना था कि पेड़ पर बैठे बंदर का संतुलन बिगड़ गया। उसके पैर उखड़ गए और वह आकाश में उड़ने लगा। परी के पंख थे न! बंदर घबरा गया। वह नीचे उतरने के लिए तेजी से हाथ-पैर हिलाने लगा। बंदर उड़ते-उड़ते परी लोक में जा पहुंचा।

परी लोक की बात ही दूसरी थी। बंदर को लगा, जैसे वह जीते-जी स्वर्ग में आ गया हो। चारों ओर सोने-चांदी से झिलमिलाते बाग। हीरे-पन्नों से चमकते फूल और फल। तितलियां-सी उड़ती रंग-बिरंगी परियां।

‘‘वाह, वाह वाह!’’ कहता हुआ बंदर एक पेड़ पर बैठ गया। गुलाबी परी के दोनों पंख उसने अपने अगल-बगल दबा लिए और लगा उछलने-कूदने। सवेरे तक उसने सारा बाग उजाड़ दिया, फिर पेड़ की सबसे ऊंची डाली पर जाकर सो गया। गुलाबी परी के पंख उसके पास थे ही। उनकी सुगंध इतनी तेज थी कि बंदर की जुएं भी उससे बेहोश हो गईं।

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दिन निकला। बाग की रखवाली करने वाली परी वहां पहुंची। उसने जब बाग की हालत देखी तो चीखने-चिल्लाने लगी। तभी उसकी निगाह पेड़ की सबसे ऊंची डाली पर पैर पसारकर सोते हुए बंदर पर पड़ी। इससे पहले उसने कभी बंदर नहीं देखा था। वह बंदर को देखकर जोर-जोर से चीखने लगी। कुछ ही देर में वहां बहुत-सी परियां इकट्ठी हो गईं। एक परी जाकर परियों की रानी को बुला लाई।

शोर से बंदर जाग उठा। वहां मची हलचल देख कर लगा खौं-खौं करने। परी रानी ने 4 परियों को आज्ञा दी, ‘‘इस बेवकूफ प्राणी को पकड़ लो।’’

आज्ञा पाते ही परियां बंदर की तरफ झपटीं। बंदर ने पंख हिलाए और फड़फड़ाकर उड़ चला।

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उड़ते-उड़ते अचानक बंदर ने देखा, नीचे एक बहुत बड़ा घर है। सारा घर फूलों से बना है। आंगन में भट्टी जल रही है। भट्टी पर एक कड़ाह रखा है। पास में एक बूढ़ा उसमें कड़छी चला रहा है। बंदर आकाश से उतर कर आंगन में आया। दीवार में छेद था, बंदर उसमें जा बैठा।

‘‘कौन हो तुम?’’ उस बूढ़े बौने ने बंदर से पूछा।

‘‘मैं बंदर हूं।’’ वह बोला, ‘‘तुम कौन हो?’’

बूढ़े बौने ने बंदर को ध्यानपूर्वक देखा। फिर बोला, ‘‘बंदर क्या होता है? मैं तो परियों का वैद्य हूं।’’

‘‘मैं महावैद्य हूं।’’ बंदर ने रौब से कहा, ‘‘देखते नहीं, मेरे पास गुलाबी पंख हैं।’’

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बूढ़े बौने ने बंदर के गुलाबी पंख देखे तो सिर हिलाता हुआ बाहर चला गया। उसके जाते ही बंदर ने घर की सारी दीवारें नोच डालीं, सारे फूल तोड़ डाले। परी रानी को पता चला तो उसने तुरन्त परी सैनिक भेजे। सैनिकों ने बूढ़े बौने का घर घेर लिया। बंदर नहीं बच सका। परी सैनिकों ने उसको पकड़ लिया। पकड़कर बंदर को परी रानी के दरबार में लाया गया।

‘‘कौन हो तुम?’’ परी रानी ने पूछा।

‘‘मैं बंदर हूं।’’ बंदर बोला।

‘‘बंदर क्या होता है?’’ रानी पूछा।

‘‘आदमी का पुरखा।’’ बंदर बोला।

‘‘आदमियों को परी लोक में आने की आज्ञा नहीं, तुम कैसे आ गए?’’ परी रानी ने पूछा।

दांत दिखाते हुए  वह बोला, ‘‘पंखों से उड़कर आया और कैसे आता?’’

परी रानी को बंदर के बगल में दबे पंखों का ध्यान आया। उसने अपनी अंगरक्षक परियों से कहा, ‘‘इसके दोनों पंख छीन लो।’’

बंदर खौं-खौं करके शोर मचाने लगा। वह कहने लगा, ‘‘ऐसा तो कभी भी नहीं सुना गया। परियां तो किसी की भी चीज को नहीं छीनतीं। तुम मेरे पंख क्यों छीनती हो? यह कहां का न्याय है?’’

परी रानी उसकी बात सुनकर बहुत शर्मिंदा-सी हो गई। सचमुच ही परियां किसी की चीज को जबरदस्ती नहीं छीनतीं।

‘‘ठहरो।’’ उसने कहा। फिर वह कुछ सोचने लगी। बहुत सोच-समझ कर जब वह थक गई तो बोली, ‘‘आदमी के इस पुरखे को कारागार में बंद कर दो। कल इसके विषय में सोचेंगे।’’

बंदर परियों की हवालात में बंद कर दिया गया। रात भर वह चुपचाप एक कोने में पड़ा रहा। जैसे ही अंधेरा हुआ, वह लगा जोर-जोर से खौं-खौं करने और शोर मचाने।

एक सैनिक परी ने जंगले में सिर डालकर उससे पूछा, ‘‘क्यों शोर मचा रहे हो?’’

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बंदर ने उसके प्रश्र का उत्तर तो नहीं दिया, लेकिन एकदम झपटकर उसकी नाक नोच ली। बेचारी सैनिक परी चीखती-चिल्लाती वहां से भाग गई। परी हवलदार आई तो बंदर छलांग लगाकर उसके कंधे पर जा चढ़ा। उस बेचारी का कान उसने इतनी जोर से काटा कि सारी हवालात में तहलका मच गया।
सवेरे परी रानी ने बंदर की हरकत सुनी तो वह मारे क्रोध के तमतमा उठी। उसने तुरन्त आज्ञा दी, ‘‘आदमी के इस पुरखे की पूंछ काट दी जाए और इसे वापस धरती पर फैंक दिया जाए।’’

परी रानी के आदेश पर बंदर को परी जल्लाद के पास ले जाया गया। वह बहुत रोया-चिल्लाया, मगर उसकी एक न सुनी गई। जल्लाद ने एक तेज छुरी से उसकी तीन-चौथाई पूंछ काट दी। फिर उसको परी लोक से नीचे फैंक दिया।

बंदर गुलाबी पंखों को भी न खोल सका। जोर-जोर से चीखता-चिल्लाता वह सीधे अपने पुराने पेड़ पर आकर गिरा। सहायता के लिए उसने अपने दोनों हाथ उठाए तो उसकी बगल में दबे दोनों गुलाबी पंख नीचे जा गिरे। पंख शरीर से अलग हटे तो बेहोश हुई जुएं जाग उठीं।  वे पागल-सी हो गईं और बंदर को काटने लगीं।

गुलाबी परी झील के किनारे बैठ रो रही थी। उसने पेड़ से अपने पंख नीचे गिरते देखे तो वह खुशी से नाच उठी। दौड़कर उसने अपने पंख उठाए और परी लोक को उड़ गई। उड़ते-उड़ते उसने नीचे की ओर देखा, बंदर अपनी कटी पूंछ को उठाए अपने शरीर को तेजी से खुजला रहा था। उसे शरारत करने की अच्छी सजा मिल गई।

शिक्षा : व्यर्थ ही किसी को नहीं सताना चाहिए और न ही कभी किसी की नकल करनी चाहिए, क्योंकि नकल करने का परिणाम बहुत भयानक निकलता है।

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