श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप व्याख्याकार: स्वामी प्रभुपाद
साक्षात स्पष्ट ज्ञान का उदाहरण भगवद्गीता
य एनं वेत्ति हन्तारं यश्चैनं मन्यते हतम्। उभौ तौ न विजानीतो नायं हन्ति न हन्यते।।
श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप व्याख्याकार: स्वामी प्रभुपाद
साक्षात स्पष्ट ज्ञान का उदाहरण भगवद्गीता
य एनं वेत्ति हन्तारं यश्चैनं मन्यते हतम्। उभौ तौ न विजानीतो नायं हन्ति न हन्यते।।

अनुवाद : जो इस जीवात्मा को मारने वाला समझता है तथा जो इसे मरा हुआ समझता है वे दोनों ही अज्ञानी हैं क्योंकि आत्मा न तो मारता है और न मारा जाता है।
तात्पर्य : जब देहधारी जीव को किसी घातक हथियार से आघात पहुंचाया जाता है तो यह समझ लेना चाहिए कि शरीर के भीतर का जीवात्मा मरा नहीं। आत्मा इतना सूक्ष्म है कि इसे किसी तरह के भौतिक हथियार से मार पाना असंभव है।
न ही जीवात्मा अपने आध्यात्मिक स्वरूप के कारण वध्य है। जिसे मारा जाता है या जिसे मरा हुआ समझा जाता है वह केवल शरीर होता है किन्तु इसका तात्पर्य शरीर के वध को प्रोत्साहित करना नहीं है। किसी भी जीव के शरीर की अनाधिकार हत्या करना निंदनिय है और राज्य तथा भगवद् विधान के द्वारा दंडनीय है। किन्तु अर्जुन को तो धर्म के नियमानुसार मारने के लिए नियुक्त किया जा रहा था, किसी पागलपनवश नहीं।
(क्रमश:)
Chanakya Niti: धरती पर रहकर भी लिया जा सकता है स्वर्ग का आनंद
NEXT STORY