Edited By ,Updated: 07 Nov, 2016 03:10 PM
श्रीमद्भगवद्गीता यथारूपव्याख्याकार : स्वामी प्रभुपाद
अध्याय छह ध्यानयोग
योगियों के लिए भोजन तथा नींद के नियम
श्रीमद्भगवद्गीता यथारूपव्याख्याकार : स्वामी प्रभुपाद
अध्याय छह ध्यानयोग
योगियों के लिए भोजन तथा नींद के नियम
नात्यश्नतस्तु योगोऽस्ति न चैकान्तमनश्रत:।
न चातिस्वप्रशीलस्य जाग्रतो नैव चार्जुन ।। 16।।
न—कभी नहीं; अति—अधिक; अश्नत:—खाने वाले का; तु—लेकिन; योग:—भगवान से जुडऩा; अस्ति—है; न—न तो; च—भी; एकान्तम्—बिल्कुल, नितांत; अनश्रत:—न भोजन करने वाला; न—न तो; च—भी; अति—अत्यधिक; स्वप्र शीलस्य—सोने वाले का; जाग्रत:—अथवा रात भर जागते रहने वाले का; न—नहीं; एव—ही; च—तथा; अर्जुन—हे अर्जुन।
अनुवाद
हे अर्जुन! जो अधिक खाता है या बहुत कम खाता है जो अधिक सोता है अथवा जो पर्याप्त नहीं सोता उसके योगी बनने की कोई संभावना नहीं है।
तात्पर्य
यहां पर योगियों के लिए भोजन तथा नींद के लिए नियमन की संस्तुति की गई है। अधिक भोजन का अर्थ है शरीर तथा आत्मा को बनाए रखने के लिए आवश्यकता से अधिक भोजन करना। मनुष्यों को मांसाहार करने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि प्रचुर मात्रा में अन्न, शाक, फल तथा दुग्ध उपलब्ध हैं।
ऐसे सादे भोज्यपदार्थ भगवद्गीता के अनुसार सतोगुणी माने जाते हैं। मांसाहार तो तमोगुणियों के लिए है। अत: जो लोग मांसाहार करते हैं, मद्यपान करते हैं, धूम्रपान करते हैं और श्री कृष्ण को भोग लगाए बिना भोजन करते हैं वे पापकर्मों का भोग करेंगे क्योंकि वे केवल दूषित वस्तुएं खाते हैं।
‘भुञ्जते ते त्वघं पापा ये पचन्त्यात्मकारणात्।’
जो व्यक्ति इंद्रियसुख के लिए खाता है या अपने लिए भोजन बनाता है किंतु श्री कृष्ण को भोजन अर्पित नहीं करता वह केवल पाप खाता है। जो पाप खाता है और नियत मात्रा से अधिक भोजन करता है वह पूर्णयोग का पालन नहीं कर सकता। श्री कृष्णभावनाभावित व्यक्ति कभी भी ऐसा भोजन नहीं करता जो इससे पूर्व श्री कृष्ण को अर्पित न किया गया हो।
अत: केवल कृष्णावनाभवित व्यक्ति ही योगाभ्यास में पूर्णता प्राप्त कर सकता है। न ही ऐसा व्यक्ति कभी योग का अभ्यास कर सकता है जो कृत्रिम उपवास की अपनी विधियां निकाल कर भोजन नहीं करता है। कृष्णभावनाभावित व्यक्ति शास्त्रों द्वारा अनुमोदित उपवास करता है। न तो वह आवश्यकता से अधिक उपवास रखता है, न ही अधिक खाता है।
इस प्रकार वह योगाभ्यास करने के लिए पूर्णत: योग्य है। जो आवश्यकता से अधिक खाता है वह सोते समय अनेक सपने देखेगा, अत: आवश्यकता से अधिक सोएगा। मनुष्य को प्रतिदिन छ: घंटे से अधिक नहीं सोना चाहिए। जो व्यक्ति चौबीस घंटों में से छ: घंटों से अधिक सोता है वह अवश्य ही तमोगुणी है। तमोगुणी व्यक्ति आलसी होता है और अधिक सोता है। ऐसा व्यक्ति योग नहीं साध सकता।
(क्रमश:)