आज करें इस देवी की पूजा, जीवन भर नहीं होगी किसी भी चीज़ की कमी

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 23 Apr, 2019 11:39 AM

bhagwati bhubaneshwari

आज 23 अप्रैल, मंगलवार वैशाख कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि है। इस दिन आदिशक्ति भगवती भुवनेश्वरी के विशेष पूजन का विधान है। देवी पुराण के अनुसार मूल प्रकृति का दूसरा नाम ही भुवनेश्वरी है। ईश्वर रात्रि में जब ईश्वर के जगद्रूप व्यवहार का लोप हो जाता है,

ये नहीं देखा तो क्या देखा (Video)

आज 23 अप्रैल, मंगलवार वैशाख कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि है। इस दिन आदिशक्ति भगवती भुवनेश्वरी के विशेष पूजन का विधान है। देवी पुराण के अनुसार मूल प्रकृति का दूसरा नाम ही भुवनेश्वरी है। ईश्वर रात्रि में जब ईश्वर के जगद्रूप व्यवहार का लोप हो जाता है, उस समय केवल ब्रह्मा अपनी अव्यक्त प्रकृति के साथ शेष रहता है, तब ईश्वर रात्रि की अधिष्ठात्री देवी भुवनेश्वरी कहलाती हैं। अंकुश और पाश इनके मुख्य आयुध हैं। अंकुश नियंत्रण का प्रतीक है और पाश राग अथवा आसक्ति का प्रतीक है। इस प्रकार सर्वरूपा मूल प्रकृति ही भुवनेश्वरी हैं, जो विश्व को वमन करने के कारण वामा, शिवमयी होने से ज्येष्ठा तथा कर्म-नियंत्रण, फलदान और जीवों को दंडित करने के कारण रौद्री कही जाती हैं। भगवान शिव का वाम भाग ही भुवनेश्वरी कहलाता है। भुवनेश्वरी के संग से ही भुवनेश्वर सदाशिव को सर्वेश होने की योग्यता प्राप्त होती है।

PunjabKesariदेवी भागवत में वर्णित मणिद्वीप की अधिष्ठात्री देवी हल्लेखा (ह्वीं) मंत्र की स्वरूपा शक्ति और सृष्टि क्रम में महालक्ष्मी स्वरूपा-आदिशक्ति भगवती भुवनेश्वरी भगवान शिव के समस्त लीला-विलास की सहचरी हैं। जगदम्बा भुवनेश्वरी का स्वरूप सौम्य और अंगक्रांति अरुण है। भक्तों को अभय और समस्त सिद्धियां प्रदान करना इनका स्वाभाविक गुण है। दस महाविद्याओं में यह पांचवें स्थान पर परिगणित हैं।

महानिर्वाण तंत्र के अनुसार सम्पूर्ण महाविद्याएं भगवती भुवनेश्वरी की सेवा में सदा संलग्न रहती हैं। सात करोड़ महामंत्र इनकी सदा आराधना करते हैं। दश महाविद्याएं ही दस सोपान हैं। काली तत्व से निर्गत होकर कमला तत्व तक की दस स्थितियां हैं, जिनसे अव्यक्त भुवनेश्वरी व्यक्त होकर ब्रह्माण्ड का रूप धारण कर सकती हैं तथा प्रलय में कमला से अर्थात व्यक्त जगत से क्रमश: लय होकर काली रूप में मूल प्रकृति बन जाती हैं। इसलिए इन्हें काल की जन्मदात्री भी कहा जाता है। 

दुर्गासप्तशती के 11वें अध्याय के मंगलाचरण में भी कहा गया है कि ‘मैं भुवनेश्वरी देवी का ध्यान करता हूं। उनके श्री अंगों की शोभा प्रात: काल के सूर्य देव के समान अरुणाभ है। उनके मस्तक पर चंद्रमा का मुकुट है। तीन नेत्रों से युक्त देवी के मुख पर मुस्कान की छटा छाई रहती है। उनके हाथों में पाश, अंकुश, वरद एवं अभय मुद्रा शोभा पाते हैं।

PunjabKesari

इस प्रकार बृहन्नील तंत्र की यह धारणा पुराणों के विवरणों से भी पुष्ट होती है कि प्रकारान्तर से काली और भुवनेश्वरी दोनों में अभेद है। अव्यक्त प्रकृति भुवनेश्वरी ही रक्तवर्णा काली हैं। 

देवी भागवत के अनुसार दुर्गम नामक दैत्य के अत्याचार से संतप्त होकर देवताओं और ब्राह्मणों ने हिमालय पर सर्वकारण स्वरूपा भगवती भुवनेश्वरी की ही आराधना की थी। उनकी आराधना से प्रसन्न होकर भगवती भुवनेश्वरी तत्काल प्रकट हो गईं। वह अपने हाथों में बाण, कमल-पुष्प तथा शाक-मूल लिए हुए थीं। उन्होंने अपने नेत्रों से अश्रुजल की सहस्रों धाराएं प्रकट कीं। इस जल से भूमंडल के सभी प्राणी तृप्त हो गए। समुद्रों तथा सरिताओं में अगाध जल भर गया और समस्त औषधियां सिंच गईं। अपने हाथ में लिए गए शाकों और फल-मूल से प्राणियों का पोषण करने के कारण भगवती भुवनेश्वरी ही ‘शताक्षी’ तथा ‘शाकाम्भरी’ नाम से विख्यात हुईं। इन्होंने ही दुर्गमासुर को युद्ध में मार कर उसके द्वारा अपहृत वेदों को देवताओं को पुन: सौंपा था। उसके बाद भगवती भुवनेश्वरी एक नाम दुर्गा प्रसिद्ध हुआ। 

भगवती भुवनेश्वरी की उपासना पुत्र प्राप्ति के लिए विशेष फलप्रदा है। रुद्रयामल में इनका कवच, नीलसरस्वती तंत्र में इनका हृदय तथा महातंत्रार्णव में इनका सहस्र नाम संकलित है।

PunjabKesari

Related Story

IPL
Chennai Super Kings

176/4

18.4

Royal Challengers Bangalore

173/6

20.0

Chennai Super Kings win by 6 wickets

RR 9.57
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!