Edited By Lata,Updated: 09 Jun, 2019 12:37 PM
हिंदू मान्यताओं के अनुसार रथ सप्तमी को सूर्य जयंती के रूप में मनाया जाता है और इस दिन के लिए विशेष पूजा-विधि अपनाई जाती है।
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हिंदू मान्यताओं के अनुसार रथ सप्तमी को सूर्य जयंती के रूप में मनाया जाता है और इस दिन के लिए विशेष पूजा-विधि अपनाई जाती है। कहते हैं कि इस दिन स्नान और दान करने से व्यक्ति की सारी मनोकामना पूरी होती है। शास्त्रों में सूर्य को ग्रहों का राजा माना जाता है। सूर्य सप्तमी वाले दिन सूर्यदेव को खुश करने के लिए आदित्य ह्रदय स्त्रोत का पाठ करना चाहिए और साथ ही व्यक्ति को व्रत भी करना चाहिए। इस दिन इनकी आराधना करने से व्यक्ति की स्मरण शक्ति बढ़ती है और ऐसी मान्यता भी है कि इस व्रत के प्रभाव से स्त्रियों को सुपुत्र की प्राप्ति होती है। पूजा-पाठ के साथ-साथ व्यक्ति को दान भी जरूर करना चाहिए। तो आइए आगे जानते हैं इस व्रत कथा के बारे में।
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पौराणिक कथा के अनुसार पांडवों में सबसे ज्येष्ठ युधिष्ठिर ने भगवान श्रीकृष्ण से पूछा कि कलयुग में स्त्रियों को किस व्रत और पूजा से सुपुत्र की प्राप्ति होगी। इस पर भगवान कृष्ण ने एक कथा कही कि प्राचीनकाल में इंदुमति नाम की एक वेश्या थी। एक बार उसने ऋषि वशिष्ठ से जाकर पूछा कि मुनिराज मैनें आज तक कोई धार्मिक कार्य नहीं किया है, लेकिन मुझे मृत्यु के पश्चात मोक्ष की इच्छा है तो वो मुझे किस प्रकार से प्राप्त होगा। इंदुमति की बात सुनकर वशिष्ठ जी ने उत्तर दिया कि महिलाओं को मुक्ति, सौभाग्य और सौंदर्य देने वाली अचला सप्तमी से बढ़कर कुछ नहीं है।
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इस दिन पूजा और व्रत करने वाली स्त्री को मनचाहा फल मिलता है। इसलिए तुम इस व्रत का विधिपूर्वक पालन करो, इससे तुम्हारा कल्याण होगा। वशिष्ठ जी के कहने पर इंदुमति ने इस व्रत का पालन किया और जब उसकी मृत्यु हुई तो उसे स्वर्ग की प्राप्ति हुई। वहां जाने के बाद वो सभी अप्सराओं की नायिका बन गई। इसी मान्यता के आधार पर इस व्रत का विशेष महत्व माना जाता है। इस दिन प्रसाद के रूप में खीर बनाई जाती है और भगवान को भोग लगाई जाती है।